
संतोष धन मिल जाता है तो हमारे
जीवन में सुख शान्ति आ जाती है,
चरित्र धन मिल जाता है तो मानव
जीवन में सार्थकता आ जाती है ।
चरित्र सबसे बड़ी स्थायी सम्पत्ति है,
चरित्र ही जीवन की वह ज्योति है,
जो कठिनाई, विपत्ति, निराशा, मद
एवं अंधकार में मार्ग दिखाती है ।
चरित्र कोरी कल्पना नहीं होती है,
यही जीवन का जगमगाता सूर्य है,
श्रीराम के कर्त्तव्य में, भरत के त्याग
में, मीरा के प्रेम में चरित्र प्रधान है।
हरिश्चन्द्र के सत्यव्रत, दधीचि के
अस्थिदान, श्रीकृष्ण के अनासक्ति
योग में चरित्र की पूर्णता के और
इसकी पवित्रता के दर्शन होते हैं।
चरित्र तो जीवन की सबसे बड़ी
आवश्यकता है जिसके अभाव में
जीवन की गति आगे नहीं बढ़ती है,
चरित्र तो जीवन रथ का सारथी है।
चरित्र उत्तम है तो यह जीवन को
सही दिशा में ही प्रेरित करता है,
चरित्रहीनता पथभ्रष्ट करके कहीं
भी विनाश गर्त में ढकेल सकती है।
मानव जीवन का सार चरित्र में ही है,
आदित्य चरित्र जीवन की कसौटी है,
हमारा उत्कृष्ट चरित्र एवं चरित्र धन
ही मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति है।
डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’
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