Categories: कविता

सम्पति सहेज कर भी न अघात

ऐश्वर्यवान कृपण के लिये विद्वान,
सुशील भी अति तुच्छ तृण समान,
कमल पुष्प कली और नाल भुभक्ष
हंस करत वंचित भ्रमर और मधुमक्ष।

कमल पुष्प मधु पराग न सक
एकत्र कर वञ्चित कृत निरर्थ,
धनवान कृत ग़रीब धन वञ्चित
प्रकृति सम हितार्थ सम लक्षित।

स्वामी एक लक्ष्य लक्ष्य, दरिद्र
एक तरसत भूखन तिलमिलात,
सम्पति सहेज कर भी न अघात,
उनके हेतु पेट पूजा मुश्किलात।

उनके कुत्तों को बिस्किट और दूध,
उनके बच्चे भूखे पेट बिलबिलात,
निर्वस्त्र ठिठुरत हैं शुष्क सर्द रात,
माँ के फटे आँचल में दुबक जात।

धन अन्न भरे भण्डार उनके प्रासाद
परिश्रम कर वे करत झोपड़ वास,
कैसा लोकतन्त्र कैसी स्वाधीनता,
जीवन की यह कैसी अवधारणा।

जीवन क्षण भंगुर नश्वर शरीर है,
दान धर्म परोपकार मिटायें दीनता,
आदित्य धरा का धरा रह जाएगा,
इसका त्याग यह संस्कार माँगता।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’

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