
मेरी रचना, मेरी कविता
——X——
विधाता की महिमा कितनी अजीब है,
दुनिया को बनाकर स्वयं अदृश्य हैं,
आँखों की ज्योति दी देखने के लिए,
फिर भी दिखते बंद आँखों से ही हैं।
भगवान तो होते ही बहुत सरल हैं,
बस नाम जपें तो हमारे हो जाते हैं,
सुख पाने पर हम उन्हें भूल जाते हैं,
दुःख आते ही वो फिर याद आते हैं।
बस मीठा बोलो, उन्हें ख़रीद लो,
सच्चे लोग बहुत ही सस्ते होते हैं,
शायद इसीलिए दुनिया के लोग
उनकी कीमत नहीं समझ पाते हैं।
पतझड़ में ही रिश्तों की परख होती है,
बारिश में तो हर पत्ता हरा दिखता है,
दुख में सोच सकारात्मक हो जाती है,
ख़ुशियों से नकारात्मकता आती है।
किसी को स्मरण रखने या उससे
मिलने के लिये मन बनाना पड़ता है,
जब मन इसका निश्चय कर लेता है,
तो वक्त अपने आप निकल आता है।
किसी की मदद करने का इरादा हो
तो स्वयं का मन भी बनाना चाहिए,
मन में जब दृढ़ निश्चय हो जाता है,
तो मदद का हाथ आगे बढ़ जाता है।
यदि हम कमजोरी पर नियंत्रण कर लें,
तो असम्भव को सम्भव बना सकते हैं,
आदित्य दृढ़ निश्चय कर आगे बढ़ें तो,
उस बुलंदी से आसमाँ झुका सकते हैं।
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ
More Stories
रंगों का त्योहार—-होली
कवि की कविता की सीमा
मन बसत मेरो वृंदावन में