
जी हाँ, चाय का समय हो गया है,
संगीत साधना,गीत लिख गया है,
आराध्य सरगम है, तार सुगम हैं,
टंकार मधुर है और स्वर संगम हैं।
तापमान निरा नीचे गिर रहा है,
हाड़ कँपाती थरथराती सर्दी है,
शीतल मलय भी तेज बह रही है,
तब चाय काफ़ी काम कर रही है।
जिनके तन ढके, वे चाय पी रहे हैं,
जिनके तन आवरणहीन नग्न हैं,
उन्हें तो न चाय न काफ़ी नसीब है,
उनकी ओर देखो, वे कितने ग़रीब हैं।
तन में वस्त्र नहीं, आँते सिकुड़ रहीं,
अलाव कहाँ हैं, कहीं भी जलते नहीं,
आदित्य महलों में सत्ताईस मंजिलें,
झोपड़ी में टाट की गुदड़ीं भी नहीं।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
More Stories
प्रेमिका ने शादी से किया इनकार, युवक चढ़ा पानी की टंकी पर, पुलिस ने बचाई जान
डीएम की अध्यक्षता में सम्पूर्ण समाधान दिवस संपन्न, शिकायतों के गुणवत्तापूर्ण निस्तारण पर जोर
बिधियानी रोड पर पैचिंग कार्य शुरू, राहगीरों को मिलेगी राहत