
ख़ुद ही मुद्दई, ख़ुद ही मुद्दालय,
ख़ुद ही पुलिस ख़ुद न्यायालय,
ख़ुद ही गवाह ख़ुद ही पैरोकारी,
ख़ुद वकील ख़ुद जाँच अधिकारी।
जहाँ तक वह देख सकते हैं,
वहाँ तक सब उनके आधीन,
न कोई नियम न कोई क़ानून,
जो वह कह दें वही है क़ानून।
न किसी का मान और न सम्मान,
व्यर्थ के आरोप, व्यर्थ प्रत्यारोप,
न कोई सबूत न कोई जानकारी,
ज़्यादा जोश में मति गई है मारी।
यह कलियुग है धोखा प्रिय है,
पर इसका प्रसाद बारी बारी से,
हमको तुमको सबको मिलता है,
बिना धोखा काम नहीं चलता है।
ईमानदारी और त्याग के बदले,
कर्मठता और बलिदान के बदले,
जेल भिजवाने की ये धमकियाँ,
अर्जित कर ली सारी शक्तियाँ।
स्वार्थरत साथी, बिलबिलाते लोग,
मेरी बिल्ली और मुझसे ही म्याऊँ,
जिन्हें कुछ करने का अवसर दिया,
उन्होंने बदनामी का तोफ़ा दिया।
काम कर विकास का मौक़ा दिया,
जनता को भरमाने का कृत्य किया,
सर्व शक्तिमान जैसे वो बन बैठे हों,
आदित्य कुछ ऐसा भ्रम पाल लिया।
डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
More Stories
डीएम-एसपी ने थाना समाधान दिवस पर सुनी जनता की समस्याएं
पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में पत्रकारों का प्रदर्शन
हाजिरा ने सेंटर टॉप कर बढ़ाया क्षेत्र का मान