
दैहिक, दैविक, भौतिक तापा,
कलिकाल सबहिं कहुँ व्यापा।
सत्य प्रसंग असत्य कहि देहीं,
औरन कहँ अति मतिभ्रम देहीं।
सज्जन साधु सन्त मत ऐहू,
मष्ट करहु, इन सन् न सनेहू।
राम राम श्री राममय जगत है,
चहुँ दिशि में कीर्ति फहरति है,
व्यापक ब्रह्म सदा अविनाशी,
राम सिया घट घट के वासी।
भजहु सदा रघुकुल रघुराई,
माया हूँ ते जिन दूरि बनाई।
दोहा:
सुनहु सन्त जन राम कर,
अति कोमल है सुभाऊ।
नाम जपत श्री राम कर,
आदित्य भवसागर तरि जाहु॥
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
