आज तुम्हारे ढोल से, गूँज रहा आकाश !
निकलेगा परिणाम कल, होगा पर्दाफाश !!
जिनकी पहली सोच ही, लूट,नफ़ा श्रीमान !
पाओगे क्या सोचिये, चुनकर उसे प्रधान !!
नेता जी है आजकल, गिनता किसके नोट !
अक्सर ये है पूछता ?, मुझसे मेरा वोट !!
जात-धर्म की फूट कर, बदल दिया परिवेश !
नेता जी सब दोगले, बेचे, खाये देश !!
कर्ज गरीबों का घटा, कहे सदा सरकार !
चढ़ती रही मजलुम के, सौरभ सदा उधार !!
सौरभ सालों बाद भी, देश रहा कंगाल !
जेबें अपनी भर गए, नेता और दलाल !!
लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात !
वोटों में चलते दिखें, थप्पड़-घूसे, लात !!
देश बांटने में लगी, नेताओं की फ़ौज !
खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज !!
पद-पैसे की आड़ में, बिकने लगा विधान !
राजनीति में घुस गए, अपराधी-शैतान !!
राजनीति नित बांटती, घर, कुनबे, परिवार !
गाँव-गली सब कर रहे, आपस में तकरार !!
✍ डॉ. सत्यवान सौरभ
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