
गैरो ने भाप ली अपनी कमजोरियां
बांटते वो रहे और हम बटते रहे।।
शादियों पहले यही तो हुआ
हम जाति -पाती के नाम पर लड़ते और बटते
रहे ।
और गैर हमारी इसी कमजोरी का फायदा उठाते रहे।
मजबूतरन हमें शदियों तक गुलामी सहनी पड़ी।
हम भारतीय हैं हमें भाषा और प्रांत के नाम पर बांटने का प्रयास ना किया जाए।
सारी भाषाएं आदरणीय है
क्यों कि सारी भाषाएं भारत की भाषा है।
और हिंदी का विरोध करने वाले हिंदूस्थान को ही छोड़ कर चले जाय क्योंकि सभी भाषाओं का जन्म एक ही भाषा से हुआ है।
सभी भाषाओं की जननी है संस्कृत जब सभी भाषाएं एक ही माँ की संतान है और सारे प्रांत भारत का हिस्सा तो मतभेद क्यों?
हिन्दी के नाम से हिन्द महासागर है।
हिन्दी नाम ही जुड़ा है हिंदुस्तान
महाराष्ट्र भी हिंदुस्तान का ही एक हिस्सा है फिर ये भेद भाव क्यों?
सभी को सारी भाषाओं की जानकारी होनी चाहिए।
इसमें कोई बुराई नहीं है ,
बल्कि गर्व की बात है ।
मगर अगर कोई नहीं सक्षम नहीं है सभी भाषाओं को सिखाने में इसका यह मतलब तो नहीं कि उसको कहीं रहने का अधिकार नहीं।
जिसकी जहां इच्छा हो जाकर नौकरी व्यवसाय कर सकता है।
यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, यह हमारा मौलिक अधिकार है। तो
इसे क्यों छिनने का प्रयास किया जा रहा है।
मेरा सभी भारतवासियों से हाथ जोड़कर विनम्र निवेदन है कि कृपया जाति, धर्म, भाषा के नाम विवाद ना करके देश की तरक्की कैसे हो इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाए। भारत वासियों को नौकरी व्यवसाय मिल सके गरीबी दूर हो सके इन विषयों पर चर्चा की जाए।
ना की भाषा ,धर्म और जाति के
नाम पर बांटने और नफरत फैलाने का काम किया जाए।
इसीलिए तो कहती हूं।
(लुट गई बस्तियां जल गया आशिया,
हम तो हमारा तुम्हारा ही करते रहे।
धर्म और भाषा के नाम पर बट गए हम तो आपस में लड़ते झगड़ते रहे।
हमको आपस में लड़ते हुए देखकर,
दुश्मनों ने चली चाल कुछ इस कदर।।
अपने ही घर में कैदी हमें कर दिया, हम पर सदियों तक वो राज करते रहे।
हम तो आपस में लड़ते झगड़ते रहे।)
हमारा मकसद है सिर्फ भारत की अखंडता को बनाए रखना है
स्वरचित व मौलिक रचना
लेखिका नूतन राय
मुंबई, महाराष्ट्र
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