January 22, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

जागो मेरे देश के युवा

हिसार(राष्ट्र की परम्परा)
आओ! हम रचे नवगीत।
रचे ऐसा नवगीत, शत्रु भी बन जाए मीत॥

साधु बन घूमते रावण
करने सीता का वरण।
आए दिन अब हो रहा,
द्रोपदी का चीर-हरण॥
करे पापियों का अब नाश, हो अच्छाई की जीत।
रचे ऐसा नवगीत, शत्रु भी बन जाए मीत॥

छलावी चालें चल रहे
कपटी-काले मन।
नित झूठे लूट रहें
सच्चाई का धन॥
बन पार्थ संग्राम लड़े, होना क्या भयभीत॥
रचे ऐसा नवगीत, शत्रु भी बन जाए मीत॥

संप्रदायों में बंटकर
न औरों के झांसे आये
जात-धर्म के नाम पर
नहीं किसी का खून बहाएँ
प्रेम सभी का सम्बल बने, हो प्रेममय प्रीत।
रचे ऐसा नवगीत, शत्रु भी बन जाए मीत॥

जो बांटे है भारत माँ को
उनको आज ललकारें।
जागो! मेरे देश के युवा
तुझको ये धरा पुकारे॥
एक-दूजे को थामें सारे, हम जोड़े ऐसी रीत।
रचे ऐसा नवगीत, शत्रु भी बन जाए मीत॥

—प्रियंका ‘सौरभ’