
तिआनजिन/नई दिल्ली। (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)चीन के तिआनजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन ने दक्षिण एशिया की नई कूटनीतिक तस्वीर को स्पष्ट कर दिया है। इस बहुपक्षीय मंच पर भारत न केवल एक सशक्त उपस्थिति के साथ उभरा, बल्कि वैश्विक नेताओं के लिए संवाद और सहयोग का केंद्र भी बना। वहीं, पाकिस्तान हाशिये पर खड़ा दिखाई दिया।
भारत की बढ़ती स्वीकार्यता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन में अपने संबोधन और द्विपक्षीय मुलाक़ातों के जरिए भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक स्वीकार्यता को प्रदर्शित किया। मोदी ने न सिर्फ बहुपक्षीय मुद्दों पर भारत का पक्ष मजबूती से रखा, बल्कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सहित कई नेताओं से महत्वपूर्ण बातचीत की।
सम्मेलन के दौरान मोदी-पुतिन और मोदी-शी जिनपिंग की गर्मजोशी भरी मुलाकातें सुर्खियों में रहीं। इन मुलाक़ातों ने यह संदेश दिया कि भारत अब वैश्विक राजनीति में अपरिहार्य केंद्र बन चुका है।
पाकिस्तान की उपेक्षा इसके विपरीत, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की उपेक्षा ने एक अलग ही तस्वीर पेश की। न तो उनकी प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात हुई और न ही औपचारिक अभिवादन का आदान-प्रदान। यह केवल भारत की ओर से दूरी नहीं थी, बल्कि चीन की मेज़बानी में भी पाकिस्तान को महत्व न मिलना एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।
सम्मेलन में जहां शी जिनपिंग ने मोदी और पुतिन के साथ गर्मजोशी से हाथ मिलाया और लंबी बातचीत की, वहीं शरीफ को वह महत्व नहीं दिया जिसकी पाकिस्तान अपेक्षा करता रहा है।
दक्षिण एशिया की नई हकीकत
इस घटनाक्रम से तीन अहम संदेश निकलते हैं—
- भारत का महत्व बीजिंग के लिए आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से कहीं अधिक बढ़ गया है।
- रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक स्वीकार्यता ने भारत को दक्षिण एशिया का निर्णायक चेहरा बना दिया है।
- पाकिस्तान की गिरती साख उसकी अस्थिर राजनीति और आर्थिक बदहाली के कारण अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साफ दिखाई दे रही है।
तिआनजिन शिखर सम्मेलन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब दक्षिण एशिया की कूटनीतिक वास्तविकता बदल चुकी है। भारत संवाद, निवेश और सहयोग का केंद्र बन रहा है, जबकि पाकिस्तान धीरे-धीरे हाशिये पर धकेला जा रहा है।