बलिया (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)भारत की पहचान उसकी संस्कृति, अध्यात्म और परंपराओं से होती है। इन्हीं में से एक जीवंत परंपरा है रामलीला, जो केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय समाज की सांस्कृतिक आत्मा का उत्सव है। देशभर में रामलीलाओं का आयोजन होता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद स्थित रसड़ा की रामलीला अपनी अनूठी भव्यता, ऐतिहासिक महत्व और सामाजिक संदेशों के कारण विशेष पहचान रखती है।
सदियों पुरानी परंपरा का जीवंत स्वरूप
रसड़ा की रामलीला केवल मंचन भर नहीं है, बल्कि यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही आस्था और विश्वास की धरोहर है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा समाज को धर्म, सत्य और न्याय की राह दिखाती रही है। यहाँ श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान और रावण के चरित्रों के माध्यम से आदर्श, मर्यादा और सत्य का संदेश पूरे समाज तक पहुँचता है।
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धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
रामलीला का सबसे महत्वपूर्ण संदेश अधर्म पर धर्म की विजय है। रावण-दहन के समय जब पूरा नगर “जय श्रीराम” के उद्घोष से गूंजता है, तो यह समाज को याद दिलाता है कि अन्याय और असत्य चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की ही जीत होती है।
सांस्कृतिक धरोहर और लोककला का संरक्षण
रसड़ा की रामलीला स्थानीय कलाकारों, संगीतकारों और समाज के लोगों की सहभागिता से जीवंत होती है। यह आयोजन न केवल धार्मिक उत्सव है बल्कि लोककला, अभिनय, संगीत और नृत्य की परंपराओं को भी संरक्षित करता है। यही कारण है कि यह महोत्सव सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक बन चुका है।
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ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व
इतिहास के पन्नों में भी रसड़ा की रामलीला का उल्लेख मिलता है। यह केवल बलिया जिले ही नहीं, बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक एक साथ परंपरा, इतिहास और संस्कृति का अनुपम संगम देखते हैं, जो उन्हें गहरी छाप छोड़ जाता है।
उद्घाटन समारोह का गौरव
इस वर्ष भी रसड़ा की रामलीला का शुभारंभ भव्यता और श्रद्धा के साथ हुआ। मंचन के उद्घाटन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। इस अवसर पर श्री नाथ बाबा मठ रसड़ा के पीठाधीश्वर महंत कौशलेंद्र गिरि जी, भाजपा जिलाध्यक्ष बलिया श्री संजय मिश्रा जी, वशिष्ठ नारायण सोनी जी, राम जी स्टेट, संतोष जायसवाल जी, निर्मल पांडेय जी सहित समिति के पदाधिकारी और बड़ी संख्या में रसड़ा की जनता उपस्थित रही।
राजेश सिंह दयाल ने कहा की रसड़ा की रामलीला केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह आस्था, संस्कृति, अध्यात्म और इतिहास का संगम है। यह परंपरा न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी को मर्यादा और आदर्शों की शिक्षा देती है, बल्कि आने वाले समय के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।