• आचार्य रामचंद्र तिवारी नई पीढ़ी के लिए एक मशाल और मिसाल : प्रो. पूनम टंडन
  • आचार्य रामचंद्र तिवारी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व विराट : प्रो. सुरेंद्र दुबे
  • केवल ‘मैं’ के भाव का विसर्जन जरूरी : प्रो. सुरेंद्र दुबे
  • साहित्य का कैनवास किसी भी विचारधारा से बड़ा : प्रो. राजवंत राव
  • विभिन्न विचारधाराओं को साक्षी मानते हुए एक स्थितप्रज्ञ आलोचक हैं आचार्य रामचंद्र तिवारी: प्रो.राजवंत राव

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा केंद्रीय हिंदी निदेशालय के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीसरे दिन समापन सत्र को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो.पूनम टंडन ने कहा कि आचार्य रामचंद्र तिवारी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना विराट है कि उसे तीन दिन में समेट पाना मुश्किल है। इसके बावजूद यह संगोष्ठी हिंदी साहित्य के अध्येताओं को दिशा देने में सफल रही। नए विद्यार्थी व शोधार्थियों का आचार्य रामचंद्र तिवारी पर आयोजित इस संगोष्ठी के द्वारा निष्ठा, समर्पण, मेधा व विशद अध्ययन से नए विद्यार्थी एवं शोधार्थियों का साक्षात्कार हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि कि हमारे छात्र ही हमारी पहचान हैं।
इस सत्र के मुख्य अतिथि एवं केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उपाध्यक्ष प्रो.सुरेंद्र दुबे ने अपने संबोधन में कहा कि तीन दिनों तक चले इस संगोष्ठी की सार्थकता इस बात में है कि आचार्य रामचंद्र तिवारी के अध्ययन का प्रिय विषय कबीर रहा है। कबीर सनातन ज्ञान परंपरा में अभेद दृष्टि को तलाश रहे थे। इस अभेद दृष्टि में ‘मैं’ का विसर्जन हो जाना स्वाभाविक है. आचार्य तिवारी में भी इस ‘मैं’ का सहज विसर्जन मौजूद है। इसलिए उनपर कोई भी चर्चा ‘मैं’ और ‘मेरा’ के भाव को विसर्जित करके ही की जा सकती है। जो इस संगोष्ठी में आरंभ से अंत तक बनी रही।
उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी इस दृष्टि से भी अत्यंत सफल मानी जाएगी कि इसमें जिन्हें आमंत्रित किया गया वह सभी गणमान्य उपस्थित हुए और अपना व्याख्यान दिया। जाहिर है कि इस उपस्थिति के पीछे आचार्य रामचंद तिवारी जी की व्यापक प्रतिष्ठा एवं स्वीकार्यता रही है।
समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि एवं कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजवंत राव ने कहा कि साहित्य इतिहास का स्रोत है। उन्होंने कहा कि इतिहास में तिथि और घटनाएं सच होती हैं बाकी सब झूठ। जबकि साहित्य में तिथि और घटनाएं झूठ होती हैं बाकी सब सच। उन्होंने कहा कि इतिहास और साहित्य दोनों में कल्पनाशीलता होती है। लेकिन साहित्यकार के पास छूट ज्यादा होती है।
उन्होंने कहा कि आचार्य रामचंद्र तिवारी सभी विचारधाराओं से मुक्त आलोचक थे। भारतीय संस्कृति में ‘विचारधारा’ नहीं बल्कि ‘विचार’ और ‘मति’ है। इसमें ‘धारा’ यूरोप से आयातित है। आचार्य रामचंद्र तिवारी सभी तरह की धाराओं को साक्षी मानते हुए भी उनसे अलग होकर पाठ आधारित आलोचना करने वाले आलोचक है। उनकी आलोचना का केंद्र बिंदु भद्र, कल्याणकारी एवं शिवत्व है।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक युग नया-नया प्रत्यय गढ़ता है। पर, किसी भी दौर का कोई भी विचार मनुष्य को अपनी परिधि में पूरी तरह समेट न सका। यहां ध्यान देने वाली बात है कि विचार या विचारधाराओं से इतर साहित्य के केंद्र में मनुष्य है। इसीलिए साहित्य का कैनवास किसी भी प्रत्यय या विचारधारा से बड़ा हो जाता है।
इस सत्र के सारस्वत अतिथि प्रो.श्रीराम परिहार ने अपने संबोधन में कहा कि आलोचक रचनाकार का समधर्मा होता है। यदि कवि अनुभूति के समधर्मा भूमि पर आचार्य रामचंद्र तिवारी का आलोचक व्यक्तित्व खड़ा नहीं हुआ होता तो वह अब तक कहीं लुप्त हो गए होते। उन्होंने कहा कि सच्चे अर्थों में साहित्य का अध्येता वही हो सकता है जो आचार्य रामचंद्र तिवारी के व्यक्तित्व में निहित मूल्यों को धारण करता हो।
समापन सत्र से पूर्व दो तकनीकी सत्र संपन्न हुए
पहले सत्र की अध्यक्षता प्रो. जोगेंद्र सिंह विसेन ने की तथा प्रो. हरीश कुमार शर्मा एवं प्रो. सिद्धार्थ शंकर ने अपना विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान दिया। दूसरा सत्र शोध-पत्र वाचन पर केंद्रित रहा जिसकी अध्यक्षता डॉ. दमयंती तिवारी ने की।
इस तीन दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र का आरंभ हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त के स्वागत वक्तव्य से हुआ. कुलसचिव प्रो. शांतनु रस्तोगी ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया। संगोष्ठी के सहसंयोजक प्रो.प्रत्यूष दुबे ने मंच संचालन किया। संयोजक प्रो.विमलेश मिश्र ने संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि इस संगोष्ठी में देशभर से पधारे कुल 26 वक्ताओं का व्याख्यान हुआ। इस संगोष्ठी में केंद्रीय हिंदी निदेशालय के नत्थूलाल का असीम सहयोग मिलता रहा। विद्यार्थी, शोधार्थी व विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, आचार्यों के साथ ही शहर के तमाम साहित्यिक अभिरुचि वाले गणमान्य लोगों का तीनों दिन पूरे उत्साह और उमंग के साथ उपस्थित रहना इस संगोष्ठी की सार्थकता को द्योतित करता है। इनकी बड़ी संख्या में उपस्थिति ने इस संगोष्ठी को उत्सव में तब्दील कर दिया। प्रो.रजनीकांत पाण्डेय, प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा, प्रो. करुणाकर राम त्रिपाठी, प्रो. गोपाल प्रसाद, प्रो. विनोद सिंह, प्रो.अनुभूति दुबे, प्रो.शरद मिश्रा, प्रो.अहमद नसीम, डॉ.संजयन त्रिपाठी, अचिंत्य लहिड़ी, डॉ.सूर्यकांत त्रिपाठी, डॉ.रंजन लता, डॉ.आलोक कुमार, डॉ. ओपी सिंह आदि की गरिमामय उपस्थित रही.
गौरव पाण्डेय को कुलपति ने किया सम्मानित
संवाद भवन में चल रही तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में हिंदी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र गौरव पाण्डेय को ‘साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार 2024’ प्राप्त होने पर कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने माँ सरस्वती की ताम्र मूर्ति और अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया।
कुलपति ने कहा कि गौरव पांडेय विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रहे हैं । उनकी यह उपलब्धि हमारे लिए विशेष है। हमारे छात्र ही हमारी पहचान हैं। हम इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
गौरव पांडेय ने 2019 में पीएच.डी की उपाधि प्रो.चित्तरंजन मिश्र के निर्देशन में प्राप्त की। 2013 से 2019 तक विश्वविद्यालय के शोध छात्र के रूप में रहे। हिन्दी विभाग की दीवार पत्रिका ‘लोकचेतना’ का पाँच वर्षों तक संपादन भी किया। गौरव वर्तमान में राजकीय महाविद्यालय, कर्वी, चित्रकूट में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं ।
इनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं। पहला कविता संग्रह ‘धरती भी एक चिड़िया है’ साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली से सन 2021 में प्रकाशित हुई। गौरव पाण्डेय की सन 2023 में प्रकाशित कृति ‘स्मृतियों के बीच घिरी है पृथ्वी’ पर उन्हें युवा साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के उपरांत बड़ी संख्या में विद्यार्थी एवं शोधार्थियों ने गौरव पाण्डेय से संवाद किया। विशेष रूप से उनकी रचना प्रक्रिया पर बातचीत की। हिंदी विभाग समेत विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के आचार्य व अधिष्ठाता ने गौरव पाण्डेय को बधाई व शुभकामनाएं दी।