—नवनीत मिश्र
भारत के सैन्य इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं, जिनका स्मरण मात्र ही साहस, समर्पण और मातृभूमि के प्रति अदम्य निष्ठा का भाव जगाता है। उन अमर योद्धाओं में सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं मेजर शैतान सिंह भाटी, जिनकी शहादत ने 1962 के भारत–चीन युद्ध में वीरता का वह स्वर्णिम अध्याय लिखा, जिसे पीढ़ियाँ आदर के साथ पढ़ती रहेंगी। उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर यह आवश्यक है कि हम न केवल उनके पराक्रम को नमन करें, बल्कि उस अद्वितीय युद्ध भावना को भी याद करें जिसने उन्हें अमर बना दिया।
18,000 फीट की ऊँचाई, असहनीय ठंड, हर दिशा में दुश्मन की घेराबंदी, सीमित हथियार और गोला-बारूद, और मात्र 120 वीर, यह दृश्य था रेज़ांग ला का, जहां 18 नवंबर 1962 को भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट की 13 कुमाऊँ कंपनी ने इतिहास की सबसे वीर लड़ाइयों में से एक लड़ी। मेजर शैतान सिंह अपने सैनिकों की प्रथम पंक्ति में डटकर नेतृत्व कर रहे थे। दुश्मन संख्या में कहीं अधिक था, लेकिन भारतीय सैनिकों के हौसले उससे भी ऊँचे।
युद्ध के दौरान मेजर शैतान सिंह कई बार गंभीर रूप से घायल हुए, लेकिन उनका संकल्प और नेतृत्व इतना दृढ़ था कि वे एक पोज़िशन से दूसरी पोज़िशन तक रेंगते हुए अपने जवानों का मनोबल बढ़ाते रहे। उन्होंने अपने सैनिकों को साफ निर्देश दिया कि “अपनी पोज़िशन नहीं छोड़नी है।” अंततः जब उनकी चोटें बहुत गंभीर हो गईं, तो साथियों ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहा, पर उन्होंने अपनी अंतिम सांसों में भी कहा कि मैं अपना कर्तव्य निभा चुका हूँ, तुम लोग अपना निभाओ।” रणभूमि में ही उन्होंने वीरगति प्राप्त की, लेकिन उनके नेतृत्व में लड़ी गई लड़ाई ने दुश्मन को भारी क्षति पहुँचाई।
उनकी अतुलनीय शौर्यगाथा के लिए उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान केवल एक पदक नहीं, बल्कि उस आदर्श भावना की पहचान है जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि होता है।
मेजर शैतान सिंह की कहानी केवल एक युद्ध की कथा नहीं है, बल्कि कर्तव्यनिष्ठा, त्याग, नेतृत्व और देशभक्ति की उज्ज्वल मिसाल है। उनका बलिदान यह सिखाता है कि कठिनतम परिस्थितियाँ भी उस योद्धा को परास्त नहीं कर सकतीं जिसके भीतर देश के लिए जीवन हो और बलिदान का साहस भी।
उनकी पुण्यतिथि पर हम इस वीर सपूत को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ऐसे अमर वीरों की वजह से ही भारत आज भी सुरक्षित और गौरवान्वित खड़ा है।
परम वीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह : 1962 के रण में अमर शौर्य का प्रतीक
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