
आज मुझे नव स्फूर्ति मिल रही है,
नव जन्म वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ,
उम्र का एक वर्ष गिनती में बढ़ा आज,
एक वर्ष जीवन मेरा कम हुआ आज।
जीवन पथ पर स्नेह मिला जिनसे,
उन सबको मेरा हृदय से धन्यवाद,
कुछ से मिलकर मेरी पहचान बनी,
कुछ यूँ ही मित्र बने थे निर्विवाद ।
कुछ क़र्मक्षेत्र के सहकर्मी परम मित्र,
सीमित पग पर डग भरते अन्य मित्र,
निश्चित मंजिल के हमसफ़र बने कुछ,
सुख-दुख देने वाले कुछ अन्य मित्र।
सम्मुख पथ का प्रसरित प्रांगण,
श्वसन तंत्र पर अवलम्बित शरीर,
जब मंज़िल पर थक कर चूर हुआ,
स्नेह शब्द देने वाले मिल गये मित्र।
नव स्फूर्ति मिली, तन श्रम दूर हुआ,
पथ जाना पहचाना लग रहा आज,
साथ चल रहीं वे यादें स्मृति बनकर,
आह्वालादित सफ़र का है स्नेह नाज़।
आँखों में सजे हुये सपने पूरे होने हैं
और हृदय में छुपी जो अभिलाषाएं;
पूरी हों अब आयु के इस नये वर्ष में,
प्रभु से विनती, वह सब सच हो जाएँ।
वैसे तो बिन माँगे ही ईश्वर ने क्रम
से सब कुछ हर समय पर दिया है,
परिवार, सखा, सम्बन्धी, सुपत्नी,
सुसंतान सबसे मिली सुख शांति है।
आज छियत्तरवाँ वर्ष लगा जीवन का,
जिसे माता पिता ने प्रभु से पाया था,
उनका और अग्रजो का स्नेहाषीश,
आदित्य नाम उन्होंने मुझे दिया था।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र, ‘आदित्य’
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