June 23, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

पतवार संभाल के चलाना पड़ता है

कविता

धूप छाँव से डरने वाले कृषक की
फसल बो कर तैयार कहाँ होती है,
डर डर तैराकी की कोशिश करने
वाले की नदिया पार कहाँ होती है।

हवाई जहाज़ उड़ाना सीखने वाले
पाइलट को दिल थामना पड़ता है,
नदी में नौका खेने वाले नाविक को,
पतवार सम्भाल के चलाना पड़ता है।

पिपीलिका दाने ले लेकर चलती है,
ऊँचे चढ़ते हुये हर बार फिसलती है,
चिड़िया दाना चुगकर मीलों उड़ती है,
मन में विश्वास और साहस भरती है।

पर्वत पर आरोही चढ़कर गिरता है,
गिरता चढ़ता चोटी पर पहुँचता है,
उसकी मेहनत बेकार नहीं होती है,
वही कोशिश आखिर साकार होती है।

गोताखोर गहरे पानी में स्वाँस थाम
डुबकी लगाकर ऊपर आ जाता है,
कोई कोई ख़ाली हाथ लौट आता है,
कोई शंख तो कोई मोती ले आता है।

मंज़िल पर आगे बढ़ने वाले राही को
झंझावतों का सामना करना पड़ता है,
जज़्बाती ख़्वाब भूलकर हिम्मत और
साहस के साथ निडर चलना पड़ता है।

चुनौतियों को स्वीकार करना पड़ता है,
हर हार को जीत में बदलना पड़ता है,
ग़लतियाँ करके सुधारना पड़ता है,
जीत के लिए नींद त्यागना पड़ता है।

संघर्ष में जंग पर डटे रहना पड़ता है,
विपरीत घोष को अपने जय घोष से
ताक़तवर बन कर दबाना पड़ता है,
आदित्य तब जयकार सफल होता है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’