
नाराज़ प्रकृति की नाराज़गी हैं भयंकर,
स्वार्थवश संसाधनों का ‘दोहन’ निरंतर।
प्रकृति-मानव का संबंध सदियों पुराना,
ऊपर उठाया लाभ चुरा लिया खजाना।
पिघल रहे ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन,
असमय बाढ़, सूखा, तूफान, भूस्खलन।
प्राकृतिक विपदाओं से जूझ रहा मानव,
मानवीय हस्तक्षेप की भूमिका में दानव।
अचानक बाढ़ गांवों का अस्तित्व मिटा,
घटनाओं ने जन-धन का नुकसान लूटा।
इस भीषण तबाही के हम साक्षी बने हैं,
सालों की मेहनत 30 सेकंड लें चलें हैं।
संजय एम तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
More Stories
उत्तर प्रदेश सरकार की बड़ी कार्रवाई: भारत-नेपाल सीमा पर 130 अवैध निर्माण ध्वस्त, 198 सील, 223 को नोटिस
सिकंदरपुर थाना परिसर में मिशन शक्ति के तहत बालिकाओं व महिलाओं को किया गया जागरूक
एक हफ्ते से जला ट्रांसफार्मर, ग्रामीणों का फूटा गुस्सा विद्युत आपूर्ति ठप, सैकड़ों परिवार उमस में बेहाल