
उत्सव और पर्व मानव मन को
स्वभाव वश आनंदित करते हैं,
उत्सव पर्व स्वाभाविक स्थिति हैं
हम हर पल इस स्थिति में जीते हैं।
उत्सव पर्व तिथि अनुसार ही क्यों,
तिथियां बस स्मृति मात्र होती हैं,
ठीक उसी तरह, जैसे “जब मन
चंगा” तभी कठौती में गंगा” होती हैं।
यथार्थ में उत्सव किसी तिथि या
समय के ऊपर निर्भर नहीं होता है।
बल्कि यह हमारी आंतरिक स्थिति
मन: स्तिथि पर निर्भर करता है।
आदित्य हँसकर लुत्फ़ के साथ जियो,
हमारा जीवन जीने के लिये होता है,
समस्याएँ, विपदाएँ अनुभव देती हैं,
साथ ही जीने का सलीका दे जाती हैं।
डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’