
गोंदिया-वैश्विक स्तरपर भारत ने 2 सितंबर 2025 को सेमीकंडक्टर इंडिया कॉन्फ्रेंस का ऐतिहासिक उद्घाटन करके न केवल एक तकनीकी युग का शुभारंभ किया बल्कि वैश्विक राजनीति,अर्थव्यवस्था और तकनीक की दिशा में भी एक निर्णायक मोड़ ला दिया। इस कॉन्फ्रेंस में दुनियाभर से 100 से अधिक विशेषज्ञों और विभिन्न देशों ने भाग लिया। यह आयोजन भारत की उस महत्वाकांक्षा का प्रतीक था जिसमें वह स्वयं को केवल डिजिटल उपभोक्ता के रूप में नहीं बल्कि डिजिटल उत्पादक और तकनीकी नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करना चाहता है। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि, जिस प्रकार 20वीं सदी ने तेल की क्रांति से दुनियाँ का आर्थिक और राजनीतिक मानचित्र बदला था, ठीक उसी प्रकार 21वीं सदी में सेमीकंडक्टर चिप दुनियाँ का समीकरण बदल रही है और भारत इस बदलाव का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है।तेल को 20वीं सदी का काला सोना कहा गया था। जिन देशों के पास तेल था उन्होंने न केवल आर्थिक समृद्धि पाई बल्कि विश्वराजनीति में भी प्रमुख भूमिका निभाई। अमेरिका और खाड़ी देशों का वर्चस्व इसी ऊर्जा राजनीति पर आधारित रहा। अब वही स्थिति सेमीकंडक्टर की है।तेल ने पिछली शताब्दी में औद्योगिक क्रांति और ऊर्जा आधारित भू-राजनीति को दिशा दी थी। चिप वह अदृश्य हीरा है जो हर मशीन, हर उपकरण और हर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का दिमाग बन चुका है। चाहे वह मोबाइल फोन हो, लैपटॉप,टीवी,इलेक्ट्रिक गाड़ियां, कैलकुलेटर, घड़ी, रक्षा उपकरण या फिर अंतरिक्ष उपग्रह, किसी भी तकनीकी उत्पाद का संचालन बिना चिप के असंभव है। यही कारण है कि आज दुनियाँ का हर बड़ा देश इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और वर्चस्व के लिए संघर्ष कर रहा है।
साथियों बात अगर हम भारत में 2 सितंबर 2025 का दिन “चिप क्रांति का ऐतिहासिक दिन”की करें तो सेमीकंडक्टर कॉन्फ्रेंस का आयोजन केवल एक उद्घाटन समारोह नहीं था बल्कि यह भारत के भविष्य का खाका था। पीएम ने जिस “डिजिटल डायमंड” की बात की,वह केवल एक प्रतीक नहीं बल्कि वास्तविकता की ओर बढ़ता हुआ कदम है। भारत ने यह दिखा दिया है कि वह केवल डेटा उपभोक्ता राष्ट्र नहीं बल्कि तकनीकीशिल्पकार बन सकता है।इस पूरे परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि 2 सितंबर 2025 का दिन भारतीय इतिहास में “चिप युग का आगाज” कहलाएगा।जैसे आजादी का दिन 15 अगस्त 1947 ने राजनीतिक स्वतंत्रता दी थी, वैसे ही 2 सितंबर 2025 ने तकनीकी स्वतंत्रता की दिशा में पहला कदम दिया है। विक्रम चिप भारत के आत्मनिर्भर भविष्य का प्रतीक है और यह भारत को 21वीं सदी में डिजिटल सुपरपावर बनने की दिशा में अग्रसर करेगा।यह वही क्षण है,जब भारत ने अपनी नई पहचान गढ़ते हुए यह घोषणा की कि आने वाले वर्षों में वह केवल चिप आयातक नहीं रहेगा बल्कि निर्यातक भी बनेगा। भारतीय पीएम ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि भारत अब डिजिटल उपभोक्ता नहीं बल्कि निर्माता बनने की राह पर है। उन्होंने भारत को “डिजिटल डायमंड” के रूप में परिभाषित करते हुए यह स्पष्ट किया कि देश में स्वदेशी क्रांति की नई नींव रखी जा चुकी है।
साथियों बात अगर कर हम सेमीकंडक्टर के वैश्विक महत्व की करें तो,सेमीकंडक्टर का महत्व केवल अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक शक्ति से भी जुड़ा है। आजकल के युद्ध केवल पारंपरिक हथियारों से नहीं लड़े जाते बल्कि साइबर युद्ध, ड्रोन, मिसाइल गाइडेंस सिस्टम और एआई आधारित तकनीकों से लड़े जाते हैं। इन सभी का संचालन चिप्स के बिना संभव नहीं। यदि किसी देश के पास अपनी चिप निर्माण क्षमता है तो वह न केवल आत्मनिर्भर रहेगा बल्कि अपने विरोधियों पर तकनीकी बढ़त भी बनाएगा। भारत के लिए यह रक्षा और अंतरिक्ष दोनों ही क्षेत्रों में निर्णायक साबित होगा। वैश्विक स्तर पर भारत की सेमीकंडक्टर पहल अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलनकारी भूमिका निभा सकती है। अमेरिका ताइवान और कोरिया पर निर्भर है लेकिन उसे भारत जैसे स्थिर और विश्वसनीय भागीदार की आवश्यकता है। चीन अपनी तकनीकी शक्ति बढ़ा रहा है, लेकिन उस पर भरोसा करने में पश्चिमी देश हिचकिचाते हैं। भारत यदि अपनी चिप इंडस्ट्री को तेजी से विकसित करता है तो वह न केवल आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भी एक निर्णायक हिस्सा होगा।
साथियों बात अगर हम सेमीकंडक्टर की परिभाषा समझनें की करें तो, यह बेहद महत्वपूर्ण है। सेमीकंडक्टर एक ऐसा पदार्थ होता है जिसकी चालकता(कंडक्टिविटी) धातु और अचालक(इन्सुलेटर) के बीच होतीहै,सिलिकॉन इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है।जब इसमें डोपिंग की जाती है तो यह नियंत्रित तरीके से विद्युत प्रवाह को संचालित करता है और इसी से ट्रांजिस्टर, माइक्रोप्रोसेसर और मेमोरी चिप बनाए जाते हैं। सरल भाषा में कहा जाए तो सेमीकंडक्टर चिप किसी भी मशीन का दिमाग होता है। यह मशीन को सोचने, निर्णय लेने और सही समय पर सही कार्य करने की क्षमता देता है। यही कारण है कि इसे आधुनिक सभ्यता का आधारस्तंभ कहा जा सकता है।कोई भी देश जो सेमीकंडक्टर निर्माण और डिजाइन में अग्रणी है, वह केवल तकनीकी शक्ति ही नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति में भी नियंत्रण स्थापित करता है। यही वजह है कि अमेरिका, चीन, ताइवान, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश इस क्षेत्र में तीव्र प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। अमेरिका अपनी तकनीकी श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए ताइवान जिसकी जनसंख्या भारत के दिल्ली से भी काम है लेकिन वह विश्व में चिप का टॉप निर्माता है उसकी टीएसएमसी और दक्षिण कोरिया की सैमसंग जैसी कंपनियों पर निर्भर है। चीन अपने “मेड इन चाइना 2025” मिशन के तहत इस क्षेत्र में भारी निवेश कर रहा है। ऐसे में भारत का इस क्षेत्र में कदम रखना केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
साथियों बातें अगर हम सेमीकंडक्टर बनाने की जटिल प्रक्रिया की करें तो, सेमीकंडक्टर निर्माण बेहद जटिल प्रक्रिया है। एक चिप बनाने के लिए सैकड़ों चरणों से गुजरना पड़ता है।इसके लिए “फैब यूनिट” की आवश्यकता होती है जिसे बनाना और चलाना अत्यंत महंगा और कठिन है। एक फैब यूनिट में 25, से 51हज़ार करोड़ रुपए तक का निवेश लगता है। इसके अलावा वहां स्वच्छता का स्तर इतना ऊंचा होता है कि उसकी तुलना अस्पताल के आईसीयू से भी नहीं की जा सकती। वास्तव में फैब यूनिट की स्वच्छता आईसीयू से हजार गुना अधिक होती है क्योंकि एक छोटे से धूलकण से भी पूरी चिप नष्ट हो सकती है। इसीलिए इसे दुनियाँ की सबसे जटिल उत्पादन प्रक्रिया कहा जाता है।भारत ने इस चुनौती को स्वीकार कर दुनियाँ को यह संदेश दिया है कि वह अब केवल उपभोक्ता नहीं रहेगा। यह कदम भारतीय युवाओं और इंजीनियरों के लिए भी अवसरों का नया द्वार खोलता है। भारत में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग स्नातक और आईटी पेशेवर मौजूद हैं।अब उन्हें सेमीकंडक्टर डिजाइनफैब्रिकेशन और टेस्टिंग जैसे क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है।
साथियों बात अगर हम भारत की”विक्रम चिप” नाम रखने की करें तो,इसका नाम विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। विक्रम साराभाई को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। उन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद भारत को अंतरिक्ष शक्ति के रूप में खड़ा किया। आज इस नाम का उपयोग कर भारत ने यह संदेश दिया है कि जिस प्रकार अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत ने आत्मनिर्भरता पाई थी,उसी प्रकार सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भी वह आत्मनिर्भर होगा। विक्रम चिप केवल तकनीक नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय विरासत और आत्मनिर्भरता की पहचान है।
साथियों बात अगर हम भारत की इस क्रांति का असर “ग्लोबल साउथ” के देशों पर भी पड़ेगा। विकासशील देश अबतक तकनीक के मामले में पश्चिम और पूर्वी एशिया पर निर्भर थे। लेकिन भारत यदि एक मजबूत चिप सप्लायर बनता है तो वह इन देशों को भी विकल्प दे सकेगा। इससे तकनीकी साम्राज्यवाद की पकड़ ढीली होगी और विकासशील देशों को अधिक अवसर मिलेंगे।अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखें तो भारत की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री आने वाले वर्षों में लाखों रोजगार उत्पन्न करेगी। निर्यात से अरबों डॉलर की आय होगी। ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता से आयात पर निर्भरता घटेगी और चालू खाता घाटा कम होगा। भारत का जीडीपी इस क्षेत्र से नई गति प्राप्त करेगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत की सेमीकंडक्टर क्रांति- विक्रम चिप और वैश्विकडिजिटल शक्तिका नया अध्याय, सेमीकंडक्टर क्षेत्र में बड़ी छलांग चिप के बिना कोई भी इलेक्ट्रॉनिक व डिजिटल उपकरण कार्य नहीं कर सकता।सेमीकंडक्टर को आधुनिक युग का “डिजिटल ऑक्सीजन” कहा जा रहा है।
–संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र