गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। मालवीय मिशन टीचर ट्रेनिंग सेंटर, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा, पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग ने योग के सैद्धांतिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा अब सर्व स्वीकार्य है। यूनेस्को ने भारतीय ज्ञान परम्परा एवं वेदों को स्वीकार किया है। भारत के मध्य प्रदेश में अवस्थित भीमबेटका गुफाओं का अध्ययन भारत के प्राचीनता को सिद्ध करता है। भारतीय परम्परा, ऋषि परम्परा है। ऋषियों के चार गुण सत्य, तप, ऋत एवं त्याग हुआ करते हैं। इन चारों गुणों को अनुसंधान करने वाला भूखंड भारत है ।
उन्होंने बताया कि महाभारत में 556 ऋषियों का उल्लेख है। जिन्होंने मानवता की रक्षा की है। ऋषि परम्परा अपने आप में योग परम्परा का उदाहरण है। मैं कौन हूं! इसका उत्तर योग दे सकता है।
आगे उन्होंने कहा कि सेंधव कालीन सभ्यता से मिलने वाली मृण्मूर्तियाँ तथा सिक्कों में उकेरी हुई आकृतियों तथा कलाओं एवं मुद्राओं से योग के इतिहास को जाना जा सकता है। योग में जीवन का अंत नहीं है। योग हमेशा हिंसा का प्रतिगामी होता है तथा सर्व कल्याण की कामना करता है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने योग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के अतिव्यस्त जीवन में यदि हमें लाइफस्टाइल बीमारियों से बचना है तो योग को अपनाना ही होगा। समाज के सभी व्यक्तियों खास कर शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को योग का अभ्यास नियमित रूप से करना चाहिए।
कार्यक्रम में अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. अनुभूति दुबे, निदेशक, प्रवेश प्रकोष्ठ प्रो. हर्ष सिन्हा, निदेशक आईक्यूएसी प्रो सुधीर श्रीवास्तव, अध्यक्ष गणित विभाग प्रो. विजय शंकर वर्मा, अध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग प्रो. धनंजय कुमार, प्रो. अनिल द्विवेदी, डॉ. राजवीर सिंह, डॉ. ब्रजेश कुमार की उपस्थिति रही। स्वागत उद्बोधन यूजीसी मालवीय मिशन टीचर ट्रेनिंग सेंटर की कार्यक्रम समन्वयक प्रो. सुनीता मुर्मू ने किया। विषय प्रस्तावना कोर्स कॉर्डिनेटर प्रो. विजय चाहल ने किया, कार्यक्रम संचालन डॉ. पवन कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. साजिद हुसैन अंसारी ने किया।
कार्यक्रम के मध्यावकाश बाद सत्र में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पधारे वरिष्ठ योग प्रशिक्षक डॉ. योगेश भट्ट ने योगाभ्यासों का स्वास्थ्यपरक दृष्टिकोण विषय पर बोलते हुए योग के स्वास्थगत लाभों पर प्रकाश डाला। स्वस्थ रहने के लिए तन और मन की शुद्धि अति आवश्यक है। मन की शुद्धि के लिए काम, क्रोध, लोभ, मद एवं मोह का परित्याग करना होता है जबकि तन की शुद्धि हेतु प्राणायाम अति आवश्यक है । प्राणायाम से तन एवं मन दोनों की शुद्धि हो जाती है। उन्होंने शौच, संतोष और तप का उल्लेख करते हुए कहा कि शौच का तात्पर्य शरीर एवं मन दोनों की पवित्रता से है । आहार की शुद्धता शरीर को निरोगी रखती है जबकि काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह का परित्याग मन की शुद्धता के लिए अति आवश्यक है। संतोष का तात्पर्य है कि जो सहजता से हमे प्राप्त हो उससे हमें संतुष्ट रहना चाहिए। तब का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें सभी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में भी सहज भाव से मन को स्थिर रखना चाहिए और उन प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुकूल अपने आप को बना लेना चाहिए।
उन्होंने विभिन्न प्रकार के आसनों एवं उसके लाभ पर भी प्रकाश डाला। योग एवं योगाभ्यास विषयक सायंकालीन सत्र में उन्होंने कई योग मुद्राओं के प्रदर्शन करके प्रतिभागियों को योग का व्यवहारिक जाएं दिया। डॉ. योगेश भट्ट का धन्यवाद ज्ञापन डॉ राव ने किया।
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