नई दिल्ली/मॉस्को(राष्ट्र की परम्परा डेस्क) अमेरिका और यूरोप की लगातार बढ़ती दबावपूर्ण नीतियों के बावजूद भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ बनाने का स्पष्ट संकेत दिया है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने गुरुवार को मॉस्को पहुंचकर भारत-रूस अंतर सरकारी आयोग (IRIGC) के 26वें सत्र की सह-अध्यक्षता की। इस उच्चस्तरीय बैठक को दोनों देशों के बीच बहुआयामी साझेदारी को नई दिशा देने वाला कदम माना जा रहा है।

बैठक के दौरान डॉ. जयशंकर ने कहा कि वह लगभग दस महीने बाद रूस आकर प्रसन्न हैं और इस महत्वपूर्ण अवसर पर दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल से मिलकर खुशी महसूस कर रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि भारत-रूस के बीच व्यापारिक संबंधों में ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज हुई है।

विदेश मंत्री ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत-रूस वस्तु व्यापार पिछले कुछ वर्षों में पाँच गुना बढ़ा है। वर्ष 2021 में जहां द्विपक्षीय व्यापार 13 अरब डॉलर था, वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 तक यह आंकड़ा बढ़कर 68 अरब डॉलर तक पहुँच गया। यह बढ़ोतरी पश्चिमी देशों के तमाम प्रतिबंधों और दबावों के बीच दोनों देशों की आर्थिक साझेदारी की मजबूती को दर्शाती है।

सूत्रों के अनुसार, बैठक में ऊर्जा सहयोग, फार्मास्यूटिकल्स, उर्वरक, रक्षा उत्पादन, उच्च प्रौद्योगिकी, परिवहन, कृषि और शिक्षा जैसे अनेक अहम क्षेत्रों पर गहन चर्चा हुई। दोनों पक्षों ने पारस्परिक हितों के लिए नए सहयोग तंत्र विकसित करने पर सहमति जताई।

विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि भारत रूस से कच्चे तेल और उर्वरक आयात को लेकर विशेष रणनीति पर काम कर रहा है, जिससे भारत को रियायती दामों पर आपूर्ति मिल सके और घरेलू बाजार स्थिर रह सके।

विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा वैश्विक भू-राजनीतिक हालात में यह बैठक भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता को उजागर करती है। पश्चिमी दुनिया की नाराज़गी के बावजूद भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों से समझौता नहीं करेगा।

निष्कर्ष

भारत-रूस रिश्तों की मजबूती इस बात का प्रमाण है कि बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच भी दोनों देश दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह बैठक न सिर्फ व्यापार और निवेश के नए आयाम खोलेगी, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति की भी झलक पेश करती है।