पर्यावरण विनाश: क्या कंक्रीट के शहर थाम पाएंगे प्रदूषण का बढ़ता कहर ?
सोमनाथ मिश्र द्वारा राष्ट्र की परम्परा के लिए
तेजी से बढ़ता शहरीकरण और अंधाधुंध निर्माण आज दुनिया के सामने सबसे बड़ा संकट बन चुका है। पेड़ों की जगह अब कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों का असीमित दोहन पर्यावरण के अस्तित्व पर सीधा प्रहार कर रहा है। पर्यावरण विनाश अब केवल वैज्ञानिक चेतावनी नहीं, बल्कि धरती पर जी रहे हर इंसान की रोज़मर्रा की सच्चाई बन चुका है।
शहरों का विस्तार विकास का संकेत माना जाता है, लेकिन जब इस विकास की कीमत साफ हवा, निर्मल पानी और हरियाली से चुकानी पड़े तो यह प्रगति नहीं, बल्कि विनाश बन जाती है। भारत सहित दुनिया के कई देशों में जंगलों की कटाई, नदियों पर अवैध निर्माण, पहाड़ों को खोखला करना और तटीय क्षेत्रों को पाटना आम बात हो गई है। इससे न केवल जैव विविधता समाप्त हो रही है, बल्कि मौसम चक्र भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
गर्मी का बढ़ता कहर, असमय बारिश, सूखा, बाढ़ और आंधी-तूफान अब सामान्य बात बनते जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों की अधिकता के पीछे सबसे बड़ा कारण औद्योगिक प्रदूषण और वाहनों से निकलने वाली जहरीली गैसें हैं। ये गैसें वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ाकर तापमान को लगातार ऊपर की ओर धकेल रही हैं।
हाल के वर्षों में मेट्रो शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) का स्तर खतरनाक सीमा को पार कर चुका है। बच्चों और बुजुर्गों में सांस संबंधी बीमारियां और एलर्जी तेजी से बढ़ रही हैं। यह सब पर्यावरण विनाश का ही परिणाम है, जिसे यदि समय रहते नहीं रोका गया तो स्थिति भयावह रूप ले सकती है।
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सवाल उठता है कि क्या कंक्रीट के इन जंगलों में कभी फिर से हरियाली लौट पाएगी? जवाब सरकार, उद्योग और आम जनता—तीनों की साझी जिम्मेदारी में छिपा है। अगर अब भी सतत विकास की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियों को शायद शुद्ध हवा और साफ पानी के बारे में सिर्फ किताबों में ही पढ़ने को मिलेगा।
सरकार को चाहिए कि वह बड़े स्तर पर वृक्षारोपण अभियान चलाए, उद्योगों पर सख्त पर्यावरणीय नियम लागू करे और प्लास्टिक, कोयला तथा पेट्रोलियम ईंधनों के उपयोग में कटौती को अनिवार्य बनाए। वहीं, आम नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए सार्वजनिक परिवहन अपनाना, पौधारोपण करना, जल संरक्षण और ऊर्जा बचत पर ध्यान देना होगा।
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आज जरूरत है सोच बदलने की, वरना कंक्रीट की यह दुनिया बहुत जल्द एक ऐसे रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगी, जहां सिर्फ प्रदूषण और बर्बादी का सन्नाटा होगा। यदि अब भी नहीं जागे, तो पर्यावरण विनाश मानव सभ्यता के अंत का कारण भी बन सकता है।
