June 20, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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रोजगार परक शिक्षा महत्व

बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा व्यक्तित्व को विकसित करने की प्रक्रिया है। इसलिए शिक्षा को भी उसी अनुरूप रोजगारपरक बनाया जाना चाहिए। जिस विषय में किसी को रुचि होती है उस विषय में वह महारत हासिल कर लेता है। अर्थात रुचि पूर्ण विषय का ज्ञान स्थाई होता है। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा और रोजगार को जोड़ा जाए और छात्रों के भीतर नए-नए कौशल और क्षमताएं विकसित की जाए। शिक्षा के क्षेत्र में यह बदलाव अत्यंत आवश्यक है वरना भारत में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। शिक्षा के बाद लोग रोजगार की तलाश करते हैं और कोई व्यक्ति नौकरी करता है तो कोई बिजनेस करता है। पहले शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य के अंदर छिपे विचार और क्षमता को विकसित करना था। जिसके वह एक अच्छा और योग्य इंसान बन सके। लेकिन आजकल के परिवेश में शिक्षा का अर्थ रोजगार से लगाया जाता है। कोई भी इंसान चाहे अमीर हो या गरीब सभी को जीविका चलाने के लिए रोजगार की आवश्यकता होती है। स्कूल, कालेज में कुछ विषय रोजगार परक होते हैं।जिनके ज्ञान की बदौलत रोजगार के अवसर मिल जाते हैं जैसे साइंस के विद्यार्थी इंजीनियरिंग और मेडिकल के क्षेत्र में अपनी शिक्षा को नया रूप देकर रोजगार के पर्याप्त अवसर पा सकते हैं। कई तरह के तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की गई है। उसे विस्तार भी दिया जा रहा है। पॉलिटेक्निक आईटीआई जैसी संस्थाएं इस दिशा में विशेष सक्रिय है। इनमें विभिन्न काम धंधों से संबंधित तकनीकी शिक्षा दी जाती है उसे प्राप्त कर व्यक्ति स्वरोजगार भी कर सकता है समस्या तो उनके लिए है जिन्होंने शिक्षा के नाम पर केवल साक्षरता और उसके प्रमाण पत्र प्राप्त किए हैं। यह विचारणीय प्रश्न है कि आज की युवा पीढ़ी को रोजगार परक शिक्षा की नितांत आवश्यकता है जिससे देश में बेरोजगारी का स्तर घटाया जा सके।

(सीमा त्रिपाठी)
शिक्षिका साहित्यकार लेखिका