काकोरी ट्रेन एक्शन अमर शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को स्मरण करते हुए नवनीत मिश्र का आलेख
भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास केवल तिथियों और घटनाओं का क्रम नहीं है, वह उन आत्माओं की गाथा है जिन्होंने हँसते-हँसते मृत्यु को गले लगाया, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ सिर उठाकर जी सकें। ऐसे ही विरले क्रांतिकारियों में एक नाम है, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी। उनका जीवन, उनका संघर्ष और उनका बलिदान यह सिखाता है कि आज़ादी कोई दान नहीं, बल्कि अनगिनत बलिदानों से उपजी चेतना है।
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे जिसने याचना नहीं, प्रतिकार का मार्ग चुना। वे जानते थे कि ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें केवल भाषणों से नहीं हिलेंगी, उसके लिए साहसिक कार्रवाई आवश्यक है। काकोरी एक्शन इसी क्रांतिकारी सोच की परिणति था। यह केवल सरकारी खजाने की लूट नहीं थी, बल्कि उस व्यवस्था को खुली चुनौती थी जो भारत की संपदा से ही भारत को गुलाम बनाए हुए थी। इस एक्शन ने अंग्रेजी शासन को यह स्पष्ट संदेश दिया कि अब भारत में डर नहीं, दृढ़ संकल्प जन्म ले चुका है।
काकोरी के बाद दमन का चक्र तेज हुआ। गिरफ्तारी, मुकदमे और कठोर सजाएँl यह सब उस साम्राज्य की हताशा का प्रमाण था जो अपने अंत को महसूस करने लगा था। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को भी गिरफ्तार किया गया और अंततः मृत्यु-दंड सुनाया गया। लेकिन अंग्रेज यह समझ नहीं पाए कि वे किसी देह को फाँसी दे सकते हैं, विचार को नहीं।
गोंडा जेल में फाँसी से पहले का उनका आचरण भारतीय इतिहास के सबसे उज्ज्वल क्षणों में से एक है। जहाँ सामान्य मनुष्य भय से टूट जाता है, वहाँ लाहिड़ी हँसते थे। उनकी मुस्कान किसी भ्रम की उपज नहीं थी, वह उस अटूट विश्वास की अभिव्यक्ति थी कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। “मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ” यह वाक्य केवल शब्द नहीं, स्वतंत्रता के भविष्य का घोष था।
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का बलिदान हमें यह याद दिलाता है कि आज़ादी केवल राजनीतिक सत्ता का हस्तांतरण नहीं है, बल्कि आत्मसम्मान और स्वाभिमान की पुनर्प्राप्ति है। उन्होंने अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि जब राष्ट्र सर्वोपरि बन जाए, तब मृत्यु भी पराजय नहीं होती, बल्कि इतिहास में अमरता का प्रवेश-द्वार बन जाती है।
आज उनके बलिदान दिवस पर उन्हें स्मरण करना केवल श्रद्धांजलि देना नहीं है, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करना है। जब भी राष्ट्र के सामने संकट आए, जब भी नैतिक साहस की परीक्षा हो, तब राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जैसे क्रांतिकारी हमें मार्ग दिखाते हैंl निडर होकर, बिना समझौते के, सत्य और स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े होने का मार्ग।
वे सचमुच मरे नहीं। वे स्वतंत्र भारत की चेतना में, उसकी आत्मा में, उसकी हर साँस में पुनर्जन्म लेते रहे हैं और लेते रहेंगे।
