मेरी रचना, मेरी कविता
——X——
किसी एक पत्थर को ख़ूब तराश कर
देवता की मूर्ति का रूप दिया जाता है,
दूसरे बदनसीब पत्थर पर नारियल
फोड़ कर मूर्ति को चढ़ाया जाता है।
पहले वाले पत्थर ने मूर्तिकार की
हथौड़ी से कुछ चोटें खायी होती हैं,
दूसरे पत्थर को रोज़ रोज़ नारियल
सर पर फोड़वाकर चोटें खानी होती हैं।
मनुष्य के गुण चीनी या नमक जैसे
होना चाहिये, जो भोजन में रहते हैं,
पर दिखाई नहीं देते और ना हों तो
उनकी बड़ी कमी महसूस करा देते हैं।
क्रोध हवा का वह झोंका होता है,
जो ज्ञान का प्रकाश बुझा देता है,
जो सच बोलता है, संसार सबसे
अधिक नफरत उससे करने लगता है।
रोग व बीमारियाँ अपने शरीर में
पैदा होकर भी हानि पहुँचाते हैं,
पर जड़ी बूटियाँ वन में पैदा होती हैं,
फिर भी हमें लाभ ही पहुँछाती हैं।
हित चाहने वाला यदि पराया भी है,
तो वह अपना जैसा लगने लगता है,
स्वार्थवश यदि कोई अपना अहित
करे, वो पराया सा लगने लगता है।
भरोसा नहीं है क्या मेरे ऊपर बस
यह कह कर लोग धोखा दे जाते हैं,
अपने पराये आज की इस दुनिया में,
आदित्य मुश्किल से पहचाने जाते हैं।
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ
More Stories
ट्रक और डबल डेकर बस की जोरदार टक्कर में पांच की मौत
सिटीजन फोरम की पहल, हिंदी की पाठशाला कार्यक्रम आयोजित
जयंती की पूर्व संध्या पर दी गई मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि