Tuesday, October 14, 2025
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अस्पतालों की भीड़: मरीज की पीड़ा और स्वास्थ्य सेवा की चुनौती

भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र लगातार बदल रहा है, लेकिन आम जनता की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। चिकित्सक की अधिकता और निजी अस्पतालों में इलाज की ऊँची कीमतें मरीज और उनके परिवार पर भारी बोझ डाल रही हैं। वहीं सरकारी अस्पतालों में रोगियों की भारी भीड़, लंबी प्रतीक्षा समय और सीमित संसाधन जनता के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। इस परिस्थिति में मरीज की जेब ही नहीं, बल्कि उसकी जिंदगी भी प्रभावित होती है।

आज की व्यस्त जीवनशैली और बढ़ती बीमारियों के चलते लोग जल्दी इलाज चाहते हैं, लेकिन निजी अस्पतालों के भारी खर्च इसे असंभव बना देते हैं। एक साधारण बीमारी का इलाज भी कभी-कभी मरीज की पॉकेट पर भारी पड़ जाता है। महंगे दवा और चिकित्सकीय शुल्क गरीब और मध्यम वर्ग के लिए एक बड़ी बाधा बनते जा रहे हैं। गंभीर बीमारी या आईसीयू में भर्ती होने पर स्थिति और भी विकट हो जाती है। मरीज के परिजन आर्थिक बोझ के साथ मानसिक तनाव से भी जूझते हैं।

वहीं, सरकारी अस्पतालों में स्थिति थोड़ी अलग है। यहां इलाज अपेक्षाकृत सस्ता या निशुल्क होता है, लेकिन भारी भीड़ और संसाधनों की कमी मरीजों की सेवा को प्रभावित करती है। डॉक्टरों की संख्या सीमित होने के कारण प्रतिदिन हजारों रोगी उनसे उपचार प्राप्त करने के लिए आते हैं। इस भीड़ में रोगियों को उचित समय और ध्यान नहीं मिल पाता, जिससे गंभीर मरीजों की जान तक खतरे में पड़ जाती है।

सरकार और नीति निर्माताओं के लिए यह आवश्यक है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार लाया जाए। केवल डॉक्टरों की संख्या बढ़ाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं, दवाओं और आईसीयू बेड की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित करना भी अनिवार्य है। साथ ही, निजी अस्पतालों में इलाज की कीमतों पर नियंत्रण और बीमा योजनाओं का प्रभावी संचालन मरीजों के लिए राहत का साधन बन सकता है।

जनमानस की नजर में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और उसकी पहुँच सबसे बड़ी चिंता है। हर मरीज को उसकी बीमारी के अनुसार उचित इलाज मिलना चाहिए, न कि उसकी आर्थिक स्थिति के अनुसार। यदि मरीज की जेब कमजोर हो तो उसका जीवन भी जोखिम में पड़ जाता है। इसलिए आवश्यक है कि स्वास्थ्य सेवाओं को लोकतांत्रिक और समावेशी बनाया जाए।

अंततः, इलाज की महंगाई और अस्पतालों की भीड़ जैसी समस्याओं से निपटना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज और जनता का भी दायित्व है कि वे स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाएं, बीमारियों के प्रति सचेत रहें और समय पर जांच करवाएं। यदि ऐसा नहीं किया गया तो मरीज की जिंदगी सस्ती इलाज की अनुपलब्धता और महंगे निजी खर्च के बीच फँसकर और अधिक कठिन हो जाएगी।

स्वास्थ्य सेवा केवल सुविधा नहीं, बल्कि जीवन की मूलभूत जरूरत है। इसे सस्ती, सुलभ और प्रभावी बनाने के लिए तुरंत और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। नहीं तो मरीज की जेब और उनकी जिंदगी दोनों ही भारी बोझ तले दबती रहेंगी।

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