Monday, October 13, 2025
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धरोहर, धर्म और धरातल : पूर्वी उत्तर प्रदेश का पर्यटन परिदृश्य

विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष प्रस्तुति : नवनीत मिश्र

पर्यटन केवल यात्रा का साधन नहीं, बल्कि यह संस्कृति, इतिहास और सामाजिक-सांस्कृतिक आदान–प्रदान का सशक्त माध्यम है। देश की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक धरोहर को देखते हुए पर्यटन क्षेत्र न केवल आर्थिक विकास का स्रोत बन सकता है बल्कि यह सामाजिक सौहार्द्र और सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश इस दृष्टि से विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह क्षेत्र प्राचीन ऐतिहासिक नगरों, धार्मिक स्थलों और प्राकृतिक सुंदरता का अद्वितीय मिश्रण प्रस्तुत करता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, वाराणसी, बलिया, मऊ, आज़मगढ़, देवरिया, कुशीनगर, संतकबीरनगर और बस्ती आदि जिलों की धरोहर, उनके मंदिर, मठ, तीर्थ और ऐतिहासिक स्थल न केवल स्थानीय लोगों के लिए गौरव का स्रोत हैं, बल्कि देश और विदेश से आने वाले पर्यटकों को भी आकर्षित करते हैं। वाराणसी विश्व का सबसे प्राचीन जीवित नगर है, जहाँ की घाटों पर गंगा की लहरों में स्नान, प्राचीन मंदिरों की भव्यता और आध्यात्मिक आस्था पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। कुशीनगर भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली के रूप में बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए विश्वस्तरीय तीर्थस्थल है। संत कबीर नगर के मगहर में संत कबीर की निर्वाण स्थली स्थित है, जो आध्यात्मिक चेतना का केंद्र है और हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द्र का संदेश देता है। गोरखपुर नाथ परंपरा, गीता प्रेस और संग्रहालयों के लिए जाना जाता है। बस्ती प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा रहा है, और अमहट तीर्थ तथा रामजानकी मार्ग के माध्यम से इसका ऐतिहासिक महत्व उजागर होता है। देवरिया अपने सरयू तट, मईल आश्रम, नाथ बाबा रुद्रपुर, सोहनाग मंदिर आदि के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के मेले, लोकगीत और लोकनृत्य न केवल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं बल्कि ग्रामीण जीवन की विविधता और संस्कृति को भी प्रदर्शित करते हैं। बलिया और मऊ स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली गाथाओं से जुड़े हैं, जो देशभक्ति पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता भी कम नहीं है। सरयू और गंगा के तट, तराई क्षेत्र की हरियाली और गाँवों की ग्रामीण जीवनशैली इसे पर्यटन के लिए विशिष्ट बनाती है। बस्ती और देवरिया के गाँवों में पारंपरिक जीवन, लोक हस्तशिल्प और त्यौहारों का आयोजन ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा दे सकता है। इको-टूरिज़्म और एग्रीटूरिज़्म के माध्यम से पर्यटकों को अनुभव के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान का अवसर भी मिल सकता है। वर्तमान समय में केंद्र और राज्य सरकार धार्मिक और बौद्ध कॉरिडोर, पर्यटन कॉरिडोर और तीर्थस्थलों तक आधुनिक सुविधाओं का निर्माण कर रही हैं। वाराणसी और कुशीनगर के आसपास सड़क, फुटपाथ, रोशनी और सुरक्षा व्यवस्थाएँ सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। इससे न केवल पर्यटकों की सुविधा बढ़ेगी, बल्कि स्थानीय समुदाय को रोजगार और व्यवसाय का अवसर भी मिलेगा। ऐसी योजनाएँ पूर्वी उत्तर प्रदेश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने और पर्यटन के सतत विकास में मदद करेंगी। हालांकि, इस क्षेत्र की संभावनाओं के बावजूद चुनौतियाँ भी हैं। आधारभूत संरचना जैसे सड़क, परिवहन, होटल और स्वच्छता की कमी, ऐतिहासिक स्थलों का अपर्याप्त संरक्षण, प्रशिक्षित गाइड और अंतरराष्ट्रीय मानकों की सुविधाओं का अभाव, तथा स्थानीय समुदाय की सीमित भागीदारी पर्यटन विकास में बाधा हैं। यदि सरकार, स्थानीय निकाय और निजी क्षेत्र मिलकर योजनाबद्ध रूप से कार्य करें, तो पूर्वी उत्तर प्रदेश न केवल धार्मिक-आध्यात्मिक पर्यटन और बौद्ध सर्किट के लिए बल्कि सांस्कृतिक और ग्रामीण पर्यटन के लिए भी वैश्विक स्तर पर पहचान बना सकता है। डिजिटल प्रचार-प्रसार, पर्यटन स्थलों की सुरक्षा और स्वच्छता, स्थानीय उत्पादों और हस्तशिल्प का प्रदर्शन, रोजगार सृजन और आर्थिक विकास में सहायक सिद्ध होंगे। विश्व पर्यटन दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि पर्यटन केवल यात्रा का अनुभव नहीं है। पूर्वी उत्तर प्रदेश की समृद्ध धरोहर, धार्मिक स्थलों, प्राकृतिक सुंदरता और सरकारी प्रयासों के कारण यह क्षेत्र देश और विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षक गंतव्य बन सकता है। सही दृष्टि, योजनाबद्ध निवेश और सामूहिक प्रयास से यह क्षेत्र न केवल रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाएगा।

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