Saturday, December 20, 2025
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आवारा कुत्तों की गिनती से क्लासरूम तक: शिक्षक बोझ का सच

सरकारी स्कूलों में गिरते शिक्षा स्तर के लिए कौन जिम्मेदार? शिक्षक या सरकार: ‘शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ’ बना राष्ट्रीय बहस

भारत में सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता लगातार सवालों के घेरे में है। हर बार जब परिणाम गिरते हैं, बच्चों की बुनियादी सीखने की क्षमता कम पाई जाती है या ड्रॉपआउट दर बढ़ती है, तो उंगलियां सबसे पहले शिक्षक की ओर उठती हैं। लेकिन क्या वाकई दोष केवल शिक्षकों का है? या फिर वह पूरा तंत्र जिम्मेदार है जिसने शिक्षक को राष्ट्र-निर्माता के बजाय मल्टी-डिपार्टमेंट कर्मचारी बना दिया है?
आज शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ सिर्फ एक प्रशासनिक समस्या नहीं बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गहराई में समाया संकट है, जो अब आवारा कुत्तों की निगरानी जैसे आदेशों तक जा पहुंचा है।

शिक्षक: पढ़ाने से अधिक ‘अन्य कार्यों’ में व्यस्त

शिक्षक का मूल कार्य बच्चों को शिक्षित करना, कक्षा को संभालना, पाठ्यक्रम को सरल बनाकर समझाना और भविष्य के नागरिक तैयार करना है। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करती है।
ग्रामीण हो या शहरी—दोनों क्षेत्रों में शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ इस कदर हावी है कि पढ़ाने के लिए निर्धारित समय का बड़ा हिस्सा अन्य कार्यों में खर्च हो जाता है।

आज शिक्षक, राज्य सरकारों के आदेशों के चलते, निम्न कार्यों में उलझ जाते हैं—
मतदाता सूची संशोधन,जनगणना कार्य,सर्वेक्षण,मध्याह्न भोजन मॉनिटरिंग
,स्वास्थ्य विभाग के टीकाकरण अभियान,सामाजिक योजनाओं का प्रचार,घर-घर सर्वे,विद्यालय भवनों की रिपोर्टिंग,और अब आवारा कुत्तों की गिनती व निगरानी जैसा विवादित कार्य,इस तरह हर महीने नया निर्देश और हर सप्ताह नई मीटिंग के कारण शिक्षण कार्य हाशिए पर चला जाता है।

शिक्षा स्तर क्यों गिर रहा है? विशेषज्ञों की 3 बड़ी वजहें

  1. शिक्षक पढ़ाते कम, रिपोर्ट भरते ज्यादा हैं
    क्लासरूम की सीखने की प्रक्रिया उस समय क्षतिग्रस्त होती है जब शिक्षक दिनभर मोबाइल एप्स में डेटा भेजने, मैदानी सर्वेक्षण करने या प्रशासनिक बैठकों में भाग लेने में व्यस्त रहते हैं।
    Focus Keyword उपयोग — शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ — इस बोझ के चलते समय पर पढ़ाई न होने से बच्चों का सीखने का स्तर स्वाभाविक रूप से गिरता है।
  2. शिक्षक की वैध कमी और बढ़ता दायित्व
    सैकड़ों स्कूल आज भी एक या दो शिक्षकों पर संचालित हो रहे हैं। ऐसे में उन्हें एक साथ मुख्याध्यापक, क्लास टीचर, एमडीएम प्रभारी, खेल प्रभारी, परीक्षा प्रभारी—सब कुछ बनना पड़ता है।
    कम स्टाफ + अधिक जिम्मेदारी = शिक्षण गुणवत्ता में गिरावट।
  3. शिक्षा नीतियों का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन कमजोर
    कागजों में शिक्षा व्यवस्था सबसे आदर्श दिखाई देती है, लेकिन वास्तविकता में—
    स्मार्ट क्लास नहीं चलती।
    बच्चों के लिए पर्याप्त शिक्षण सामग्री नहीं।
    शिक्षकों का प्रशिक्षण नियमित नहीं।
    अभिभावकों की जागरूकता कम।
    इन सबके बीच सबसे आसान निशाना शिक्षक ही बनता है।
    आवारा कुत्तों की निगरानी का आदेश—तनाव का नया अध्याय
    हाल ही में कुछ जिलों में प्रशासन की ओर से ऐसा निर्देश जारी हुआ कि शिक्षक आवारा कुत्तों की गिनती व निगरानी करेंगे। यह आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और देशभर में बहस छिड़ गई।
    लोगों का सवाल बिल्कुल ज़ायज है—
    “क्या शिक्षक हर समस्या का समाधान हैं? क्या शिक्षा व्यवस्था शिक्षक से इतर कुछ नहीं सोच सकती?”
    यह आदेश बताता है कि शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ अब किस स्तर तक पहुंच चुका है।

क्या केवल शिक्षक को दोष देना उचित है?
सरकारी स्कूलों के स्तर में गिरावट के लिए सिर्फ शिक्षक को जिम्मेदार ठहराना न तो न्यायसंगत है और न ही व्यवहारिक।
यह एक सिस्टम फेल्योर है—
खराब प्लानिंग,प्रशासनिक कार्यों का अंबार,विभागीय तालमेल की कमी,राजनीतिक हस्तक्षेप,और असंतुलित कार्य-विभाजन
जब तक शिक्षक को सिर्फ पढ़ाने का समय और वातावरण नहीं मिलेगा, तब तक किसी भी शिक्षा नीति का परिणाम अपेक्षित नहीं हो सकता।
समाधान क्या है?

  1. गैर-शैक्षणिक कार्यों से तत्काल मुक्त करना
    शिक्षक का मुख्य कार्य पढ़ाना है—इसे कानूनन संरक्षित किया जाना चाहिए।
  2. प्रत्येक स्कूल में पर्याप्त स्टाफ की नियुक्ति
    एकल-शिक्षक स्कूल देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
  3. तकनीक का सही उपयोग
    डिजिटल एप्स और पोर्टल शिक्षक के लिए मददगार हों, बोझ नहीं।
  4. PTA और समाज की सक्रिय भागीदारी
    माता-पिता और समुदाय का सहयोग शिक्षा को मजबूत कर सकता है।
  5. प्रशासनिक जिम्मेदारियों के लिए अलग कैडर
    डाटा एंट्री, सर्वे और अभियान के लिए शिक्षा विभाग को अलग स्टाफ तैनात करना चाहिए।

शिक्षक पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ न केवल शिक्षकों को दबा रहा है बल्कि शिक्षा के पूरे ढांचे को कमजोर बना रहा है।
अगर हम सच में सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारना चाहते हैं, तो सबसे पहले शिक्षक को उसका मूल अधिकार—‘शिक्षण’—वापस देना होगा।
शिक्षक राष्ट्र-निर्माता हैं, न कि सर्वे कर्मचारी, गिनती कर्मचारी और न ही हर विभाग के लिए उपलब्ध संसाधन।
जब शिक्षक पढ़ाएंगे, तभी देश पढ़ेगा।

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