
कविता लिखना अब शौक़ बन गया है,
रचना करने का जुनून पैदा हो गया है,
अपने मन कि बात ही तो कह रहा हूँ,
किसी से उसका क्या कुछ ले रहा हूँ।
इन रचनाओं से न कुछ लाभ ले रहा हूँ,
और न ही अपनी कोई जेब भर रहा हूँ,
जो कर रहा हूँ सबके लिए कर रहा हूँ,
लिखता हूँ, सबके लिये लिखता हूँ।
जो ख़ुश होते हैं पढ़ कर मेरी रचनायें
उनका कृतज्ञ हो आभार कर रहा हूँ,
जो नही कहते कुछ भी, बस हृदय में
रखते, उनका भी आभार कह रहा हूँ।
अपनी वाणी तो उस धागे जैसी है,
जो सुई में जाकर मोती पिरोती है,
छिद्र करना सुई का काम होता है,
पुष्प पिरो माला गूँथना पड़ता है।
वक्त बेवक्त लिखते रहना तो वक्त
की अनुगूँज पर ही आधारित होता है,
किसी के पास पढ़ने का वक्त नहीं है,
मेरा लिखकर भी वक्त नहीं कटता है।
वक्त किसी को दिखाई नहीं देता,
पर सबको सबकुछ दिखा देता है,
रचना को अच्छी तो सब कह देते हैं,
उनका अपनापन वक्त सिखा देता है।
आदित्य रचनाओं से भला हो सबका,
देश,समाज से दिशानिर्देश ले रहा हूँ,
कामयाबी मिले न मिले रचनाओं से,
वक्त का निर्देश शिरोधार्य कर रहा हूँ।
- कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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