ग़लती तो जीवन का एक पृष्ठ है,
पर जीवन पूरी की पूरी पुस्तक है,
अत: किसी एक पन्ने के लिये पूरी
की पूरी पुस्तक हमें नहीं खोना है।
एक पेंड़ से तो लाखों माचिस
बन सकती हैं, पर एक तीली
लाखों पेड़ों को जला देती है,
अत: सोच सकारात्मक रखनी है।
जब सकारात्मक सोच होगी तो
धन का होना भी सार्थक होता है,
सकारात्मकता सोच में हो तब,
धन के साथ धर्म सार्थक होता है।
जीवन में सकारात्मकता तभी होती है
जब विशिष्टता के साथ शिष्टता हो,
सुन्दरता के साथ चरित्र निर्मल हो,
व ऐश्वर्य के साथ स्वास्थ्य अच्छा हो।
मंदिर में भक्ति, व्यापार में व्यवहार,
विद्या के साथ विनम्रता, यश के
साथ अहंकार न हो तो बुद्धि के
साथ विवेक सकारात्मक होते हैं।
इन सब के साथ परिवार व समाज
में प्रेम और विश्वास आवश्यक हैं,
मनुष्य के जीवन में दया, क्षमा, प्रेम
और विश्वास जीवन सार्थक बनाते हैं।
सकारात्मक सोच वह होती है जहाँ
छीनकर अपना पेट भरने के बजाय,
आदित्य बाँट कर अपना भी और हर
ज़रूरत मंद का पेट भरने की सोच हो।
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