पलकें झपकाती हैं साथ साथ,
सब कुछ देखती हैं साथ साथ,
रोती सोती भी हैं वे साथ साथ,
दोनों आँखे रहती हैं साथ साथ।
देख नहीं पाती हैं एक दूसरे को,
पर सब कुछ करती साथ साथ,
कैसा गहरा रिश्ता है आँखों का,
खुलती बंद होती हैं साथ साथ।
दोस्ती अनोखी आँखों की होती है,
नहीं देखने में और कहीं मिलती है,
पति – पत्नी हों या भाई – बहन हों,
माँ – बेटा हों या फिर माँ – बेटी हों।
रिश्ता नहीं किसी का आँखों जैसा,
जहाँ आँसू भी बहते हैं साथ साथ,
मर्यादा में आँखें रहती हैं साथ साथ,
शैतानी करती हैं वो भी साथ साथ।
आदित्य ईश्वर की करनी विचित्र,
साथ साथ आँखें देखें हर एक चित्र,
कितनी अनुपम जोड़ी इन आँखों की,
मिलते नहीं हैं जग में ऐसे कोई मित्र।
- कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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