Thursday, November 20, 2025
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आठ पहर चौसठ घड़ी, लगा रहे अनुराग: प्रेम और समर्पण की अनंत भावना

● नवनीत मिश्र

भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में प्रेम, भक्ति और समर्पण को व्यक्त करने के लिए अनेक गूढ़ और काव्यमय प्रतीक मिलते हैं। इन्हीं में से एक सुन्दर भाव है “आठ पहर चौसठ घड़ी, लगा रहे अनुराग।” यह वाक्य केवल समय का संकेत नहीं, बल्कि मनुष्य के भीतर बसे प्रेम की उस निरंतरता का चित्रण है जो क्षण-क्षण अपने प्रियतम, अपने आराध्य या अपने लक्ष्य से जुड़ा रहता है।
अनुराग सामान्य प्रेम का नाम नहीं है। यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति अपने प्रिय के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाता है। चाहे वह ईश्वर हो, मनुष्य हो, कर्तव्य हो या कोई विचार, यह अनुराग जीवन के हर क्षण को पावन बना देता है। इसीलिए कहा गया है कि यदि प्रेम सच्चा हो तो उसके लिए रात-दिन का कोई बंधन नहीं रहा करता।
पुरानी भारतीय समय-गणना में एक दिन-रात में आठ पहर और चौसठ घड़ी मानी जाती थीं।
यहाँ इनका उपयोग समय की इकाई के रूप में नहीं, बल्कि निरंतरता के प्रतीक के रूप में हुआ है। अर्थ यह कि सभी पहर, सभी घड़ियाँ, सभी क्षण, हर पल मन अनुराग से भरा रहे। यह एक ऐसा समर्पण है जो रुकता नहीं, थमता नहीं और किसी परिस्थिति पर निर्भर नहीं।
संत साहित्य से लेकर भक्तिकाल की कविताओं तक, अनुराग सर्वोच्च अनुभव माना गया है।
मीरा बाई कहती हैं “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।” तो वहीँ संत कबीर ने कहा “प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाय।”
इन सबमें वही भाव है कि जब हृदय में प्रेम की ज्योति जलती है, तो वह हर क्षण जलती रहती है।
यह कथन केवल भक्ति का नहीं, मानवीय प्रेम और संवेदना का भी सूचक है।
जब किसी के प्रति सच्चा अनुराग होता है, तो उसकी चिंता, उसकी खुशी, उसका अस्तित्व, सब अपने जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। प्रेम समय का मोहताज नहीं रहता; वह आठ पहर, चौसठ घड़ी, अटूट रूप से धड़कता है।
आज की व्यस्तता और तेज रफ्तार दुनिया में प्रेम और समर्पण अक्सर क्षणिक या औपचारिक हो जाते हैं।
ऐसे समय में यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि जीवन में यदि किसी चीज को सार्थक बनाना हैI चाहे वह संबंध हो, कार्य हो या आत्म-उन्नति, तो उसके प्रति निरंतर अनुराग आवश्यक है।
“आठ पहर चौसठ घड़ी, लगा रहे अनुराग”, यह केवल एक काव्य-पंक्ति नहीं, बल्कि जीवन का मंत्र है।
यह हमें सिखाती है कि प्रेम, भक्ति, लगन और समर्पण तभी फलदायी होते हैं, जब वे हर क्षण हमारे भीतर जीवित रहें।
अनुराग का यह प्रवाह ही जीवन को सुंदर, सार्थक और दिव्य बनाता है।

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