Thursday, November 27, 2025
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प्रकृति के मौन संदेशों को सुनने वाले वैज्ञानिक: डॉक्टर जगदीश चंद्र बोस

पुनीत मिश्र

विज्ञान के विशाल परिदृश्य में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो केवल प्रयोगशाला की दीवारों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि अपनी दृष्टि को प्रकृति, जीवन और मानवता की व्यापक समझ से जोड़ देते हैं। जगदीश चंद्र बोस ऐसा ही एक नाम हैं। एक वैज्ञानिक, एक खोजकर्ता और एक ऐसे चिंतक, जिन्होंने अदृश्य तरंगों में भविष्य की तकनीक और मौन पौधों में जीवन की धड़कन पहचान ली।
आज जब दुनिया वायरलेस संचार, माइक्रोवेव तकनीक और जैविक अनुसंधान के चमत्कारों पर गर्व करती है, तब यह स्मरण करना आवश्यक है कि इन क्षेत्रों में भारत के इस मनीषी का योगदान कितना मौलिक और दूरदर्शी था। 1895 में बोस ने रेडियो तरंगों का प्रसारण और रिसेप्शन प्रदर्शित किया, उस समय जब वायरलेस नेटवर्क की कल्पना भी वैज्ञानिक दुनिया के लिए एक रोमांच मात्र थी। उन्होंने ऐसे उपकरण विकसित किए जो बाद में वैश्विक संचार प्रणाली का आधार बने, लेकिन उन्होंने अपनी खोजों का पेटेंट कराने से इनकार कर दिया। उनके अनुसार विज्ञान मानवता की साझा विरासत है, किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं। यह दृष्टि आज भी वैज्ञानिक जगत को प्रेरित करती है।
बोस के योगदान का दूसरा पहलू और भी चमत्कारी है। उन्होंने साबित किया कि पौधे संवेदनहीन नहीं, बल्कि जीवित प्रतिक्रियाशील प्रणालियाँ हैं। क्रेस्कोग्राफ जैसे उपकरण बनाकर उन्होंने दिखाया कि पौधे प्रकाश, ताप, ध्वनि और रासायनिक प्रभावों पर प्रतिक्रिया करते हैं। यह विचार उस समय इतना अनोखा था कि दुनिया को इसे स्वीकार करने में समय लगा। लेकिन बोस ने धैर्य और वैज्ञानिक प्रामाणिकता के सहारे सिद्ध किया कि जीवन की अभिव्यक्ति केवल गतिशीलता में नहीं, संवेदनशीलता में भी होती है।
आज जब पर्यावरण और प्रकृति के साथ मनुष्य का संबंध पुनर्परिभाषित हो रहा है, बोस का काम और भी प्रासंगिक प्रतीत होता है। उन्होंने सजीव और निर्जीव दोनों में ऊर्जा और प्रतिक्रियाओं की समानता की बात कही, यह वैज्ञानिक अवधारणा आज सतत विकास, प्रकृति संरक्षण और जैविक विविधता जैसे विषयों को नई दृष्टि देने में सक्षम है।
यह भी उल्लेखनीय है कि बोस ने ऐसे समय में विज्ञान किया जब औपनिवेशिक भारत में संसाधनों की कमी थी, और भारतीय वैज्ञानिकों को मान्यता मिलने में भारी कठिनाइयाँ थीं। फिर भी उन्होंने अपनी दृढ़ता, सिद्धांतों और रचनात्मकता के बल पर विश्व मंच पर भारत की उपस्थिति दर्ज कराई।
आज आवश्यकता है कि उनकी वैज्ञानिक चेतना, जिसमें सादगी, वैचारिक स्वतंत्रता, नैतिकता और प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान शामिल था, को हम अपने शिक्षा और शोध संस्कारों में पुनः स्थापित करें। बोस हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा विज्ञान वही है जो सीमाओं को तोड़े, रूढ़ियों को चुनौती दे और मानवता को आगे बढ़ाए।
डॉक्टर जगदीश चंद्र बोस का जीवन और कार्य एक संदेश देता है- “प्रकृति बोलती है, बस सुनने वाले कान और समझने वाली दृष्टि चाहिए।”

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