उतरौला ,बलरामपुर(राष्ट्र की परम्परा)
जिला शुल्क नियामक समिति की बैठक भले ही मंगलवार को जिलाधिकारी पवन अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोजित कर ली गई हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे पूरी तरह विपरीत है। निजी विद्यालयों ने न केवल बिना अनुमति के फीस बढ़ोतरी पहले ही कर दी है, बल्कि किताबें, यूनिफॉर्म, जूते, कॉपी जैसी वस्तुएं भी अपने मनमर्जी से चयनित दुकानों से अभिभावकों को खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
डीएम द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि कोई भी निजी विद्यालय 10 प्रतिशत से अधिक फीस नहीं बढ़ा सकता और वह भी शुल्क नियामक समिति की अनुमति के बिना, लेकिन यह आदेश तब आया जब नया शैक्षणिक सत्र प्रारंभ हुए 20 दिन से अधिक बीत चुके हैं। अधिकांश निजी विद्यालय अप्रैल माह की फीस वसूल चुके हैं, वह भी 15 से 25 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी के साथ। अभिभावकों का कहना है कि प्रशासन की सक्रियता समय रहते होती, तो इसका लाभ मिलता, लेकिन अब तो आदेश “पानी सिर से ऊपर जाने के बाद तौलिए से रोकने” जैसा प्रतीत हो रहा है।
डीएम ने चेतावनी दी कि किसी विद्यालय द्वारा छात्रों को विशेष विक्रेताओं से सामान खरीदने को बाध्य नहीं किया जाएगा, लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकांश विद्यालयों ने पूर्व निर्धारित दुकानों के पर्चे बांटकर अभिभावकों को वहीं से खरीदारी के लिए विवश कर दिया है। ये सामान बाज़ार दर से दोगुनी कीमत पर बिक रहे हैं। कई दुकानों पर नो रिटर्न, नो एक्सचेंज की शर्तें भी लागू की गई हैं।
कुछ विद्यालयों ने “ग्रीन डे”, “ब्लू डे”, “डांस क्लास”, “एक्स्ट्रा एजुकेशन पैकेज” आदि के नाम पर 2,000 से 5,000 रुपये तक की अतिरिक्त वसूली कर डाली है। डीएम की सख्ती की बातें अभिभावकों को महज एक औपचारिकता लग रही हैं, क्योंकि प्रशासनिक हस्तक्षेप की अनुपस्थिति में विद्यालयों के हौसले बुलंद हैं।
निजी विद्यालयों द्वारा आरटीई (निःशुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम) के तहत गरीब बच्चों को प्रवेश देने की अनदेखी भी लंबे समय से जारी है। अधिकतर स्कूलों ने या तो सीटें खाली रखी हैं या फिर फॉर्म लेने के बाद अभिभावकों को टरका दिया है।
सवाल यह उठता है कि जब डीएम को यह सब पहले से ज्ञात था, तो कार्रवाई इतने विलंब से क्यों? अब जबकि अधिकांश अभिभावकों से शुल्क वसूला जा चुका है, किताबें बिक चुकी हैं और स्कूल एकतरफा नियम थोप चुके हैं – तब जाकर बैठकों और निर्देशों की बौछार किसलिए?
अब उम्मीद नहीं, सवाल उठ रहे हैं।
क्या इन निर्देशों का अब कोई अर्थ रह गया है? क्या डीएम का आदेश निजी स्कूलों पर लागू भी होगा या यह भी अन्य सरकारी घोषणाओं की तरह सिर्फ कागज़ों तक सीमित रहेगा? क्या ज़िले में एक भी निजी स्कूल को अब तक नोटिस देकर वसूली पर रोक लगाई गई?
अभिभावकों की ओर से यह आवाज़ अब तेज़ हो रही है कि प्रशासन को सिर्फ आदेश पारित नहीं, उनके अमल की भी सख़्ती से निगरानी करनी चाहिए — वरना यह आदेश भी “शोभा की सुपारी” बनकर रह जाएगा।
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