Categories: कविता

मंज़िल

ज़िंदगी में मायूसी न ठहर सके,
शाम सूरज ढले सुबह फिर उगे,
धीरे धीरे ज़िन्दगी यूँ चलती रहे,
मंज़िल की राह यूँ तय होती रहे।

जीवन के प्रश्न हल करने पड़ेंगे,
पवित्रता से अर्चन करने पड़ेंगे,
आराध्य को ये अर्ध्य देने पड़ेंगे,
सभी स्वप्न साकार करने पड़ेंगे।

चुनोती स्वीकार करनी ही होगी,
अवसर मिले तो लाभ लेने पड़ेंगे,
साहिल तक यदि पहुँचना है तो,
नौका के पतवार ख़ुद ख़ेने पड़ेंगे।

उलझने आयेंगी, सुलझानी होंगी,
सारे खेल जम करके खेलने होंगे,
जीवन के कष्ट सहन करने पड़ेंगे,
हँस-हँस कर ये पल बिताने पड़ेंगे।

दुःख-सुख का मेला जीवन है,
जीवन के यह गीत गाने पड़ेंगे,
पोथी के सब पन्ने पलटने पड़ेंगे,
जीवन के सारे पाठ पढ़ने पड़ेंगे।

जीवन ऐसा घट है जहाँ अमृत है,
तो दूसरी ओर विष भी तो होता है,
आदित्य यही जीवन का सन्देश है,
उसे द्रुतगति से चहुँ ओर फैलाना है।

  • कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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