
सृजनकर्ता की संवेदना सृजन है,
सृजनात्मक प्रक्रिया में संघर्ष है,
दृश्यात्मकता स्पष्ट नहीं होती है,
पर रचनात्मकता स्पष्ट होती है।
लकड़ी में कील ठोक दी जाती है,
जो आसानी से नहीं निकलती है,
निकलती तो छेद हमेशा के लिये
उसी जगह लकड़ी में कर जाती है।
हमारे रिश्ते भी इसी तरह होते हैं,
थोड़ी सी अनबन से टूटने लगते हैं,
टूटकर ज़रूरतवश जुड़ भी जाते हैं,
पर परस्पर एक दरार डाल जाते हैं।
रिश्तों की स्थिरता आपसी प्रेम
और व्यवहार पर निर्भर होती है,
धैर्य व त्याग से निभायी जाती है,
तब अमीर,ग़रीब में दोस्ती होती है।
सोने की चैन और चैन से सोना,
दोनों बातों में अन्तर कितना है,
एक अमीर के गले में लटकती है,
दूसरी ग़रीब को सुख चैन देती है।
सुख चैन का जीवन एक सृजन है,
सृजनात्मकता परस्पर मित्रता है,
आदित्य सृजन एक ओर संघर्ष है,
दूसरी ओर संघर्ष सृजन सफलता है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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