मेरा भारत देश है गाँवों का,
ऐसा पहले से माना जाता है,
आधी से ज़्यादा आबादी का
गाँवों में ही रहना सहना है।
कोविड वाइरस से मची तबाही,
बच्चों की शिक्षा रुकी पड़ी थी,
लगभग दो सालों तक देश की
सब पाठशालायें बंद पड़ीं थीं।
ऑनलाइन बच्चे पढ़ते थे,
शिक्षक भी उन्हें पढ़ाते थे,
स्मार्ट फ़ोन से इंटर्नेट पर,
हर पाठ उन्हें सिखलाते थे।
सुनने में अच्छा लगता था,
भारत में पढ़ाई जारी थी,
धरातल पर जाकर पाया,
तो दिखती मारा मारी थी।
सर्वेक्षण था आठ प्रतिशत
गाँवों में बच्चे पढ़ पाते थे,
न स्मार्ट फ़ोन की सुविधा,
न इंटरनेट वह ले पाते थे।
सैंतीश प्रतिशत का स्कूल बंद,
बच्चे स्कूल नहीं जा पाते थे,
उन का भविष्य अंधकारमय,
संदेश देश भर से ये आते थे।
शहरों की स्थिति बेहतर थी,
ऐसा ही माना तो जाता था,
पर रोज़ी रोटी के तो लाले थे,
रोज़गार नही चल पाता था।
मज़दूरी नही मिल रही थी,
ख़ौफ़ कोरोना वाइरस के,
दो गज की दूरी और मास्क
दोस्त बन गये हर पल के।
जो पढ़ना लिखना भूल चुके थे,
उनका भविष्य अब कैसा होगा?
उनके भविष्य का यह देश भारत,
क्या अब विश्व गुरू बन पाएगा?
भारत के भविष्य की शिक्षा-
सेहत अब तक बिगड़ रही है,
और कई दशकों तक आदित्य
दशा यह नहीं सुधरने वाली है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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