November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

छेरछेरा परब


हमर मन के गली-खोर म हवय डेरा।
माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा।।

धान ह धरागे, पुस पुन्नी के दिन आगे।
टूरी-टूरा मन सुआ अउ डंडा नाच नाचे।।
हम लइका-पिचका मन घेरे हवन घेरा।
माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा।।

कोनों धरे हन बोरी, कोनों मन चुरकी।
कोनों धरे हन झोला, कोनों मन अंगौछी।।
छबाए कोठी के धान ल झटकुन हेरा।
माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा।।

एक पसर देदे या देदे सूपा म भरके।
कहूँ खोंची म देबे, लेलेबो हमन लरके।।
दूसर दूवारी जाना हे, होगे अबड़ बेरा।
माँगे बर आए हवन तुंहर घर छेरछेरा।।

कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़
जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई