Sunday, December 21, 2025
HomeUncategorizedसरकारी अनदेखी के बीच ग्रामीणों का साहस, गायघाट में बना उम्मीदों का...

सरकारी अनदेखी के बीच ग्रामीणों का साहस, गायघाट में बना उम्मीदों का रास्ता

गायघाट के युवाओं ने बनाया उम्मीदों का पुल, 3 किलोमीटर की दूरी हुई 1 किलोमीटर से भी कम

राष्ट्र की परम्परा के लिए – प्रवीण कुमार यादव

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र के गायघाट गांव में युवाओं और बुजुर्गों के अद्भुत जज़्बे ने एक बार फिर साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो संसाधनों की कमी भी राह नहीं रोक सकती। वर्षों से लंबित एक बेहद जरूरी मांग — मदनपुर से गायघाट के बीच सुगम आवागमन — अब ग्रामीणों ने खुद पूरी कर दिखाई है।

जहां पहले लोगों को गायघाट पहुंचने के लिए लगभग 3 किलोमीटर का लंबा फेरा लगाना पड़ता था, वहीं अब युवाओं द्वारा बनाए गए लकड़ी के अस्थायी पुल के जरिए यह दूरी 1 किलोमीटर से भी कम हो गई है। यह सिर्फ एक पुल नहीं, बल्कि गांव की सामूहिक चेतना, श्रमदान और संघर्षशील सोच का प्रतीक बन चुका है।

ये भी पढ़ें –देवरिया में ब्रिज चौड़ीकरण के कारण विशेष ट्रेनों को लिया गया डाइवर्जन पर

यह पहल कई सवाल भी खड़े करती है। जब आम जनता की बुनियादी सुविधाएं — जैसे सड़क और पुल — उपलब्ध कराना सरकार और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है, तब यह काम ग्रामीण युवाओं के कंधों पर क्यों आ गया? वर्षों से जाती-जाती मांगों के बाद भी जब न कोई स्थायी योजना बनी, न कोई ठोस कार्यवाही हुई, तो ग्रामीणों ने हार न मानकर खुद मोर्चा संभाल लिया।

बिना किसी सरकारी सहायता के, अपने संसाधनों और सामूहिक श्रम से युवाओं ने दिनों की मेहनत के बाद यह अस्थायी पुल खड़ा किया। इसमें ग्रामीण बुजुर्गों का अनुभव और युवाओं की ऊर्जा दोनों की अहम भूमिका रही। आज यह पुल स्कूल जाने वाले बच्चों, खेत जाने वाले किसानों और रोज़मर्रा के काम से आने-जाने वालों के लिए बड़ी राहत बन गया है।

गांव के लोगों का कहना है कि यह पुल भले अस्थायी हो, लेकिन उनका संकल्प स्थायी है। प्रशासन से मांग की जा रही है कि इस स्थान पर तत्काल निरीक्षण कर स्थायी आरसीसी पुल का निर्माण कराया जाए, ताकि भविष्य में किसी प्रकार का खतरा न बने और लोगों को स्थायी समाधान मिल सके।

इस ऐतिहासिक पहल में योगदान देने वालों में दयाशंकर यादव (पूर्व प्रधान), जनार्दन यादव, कुलदीप यादव, छोटू वर्मा, संजय यादव, मुकेश यादव, प्रदुम्न यादव, अक्षय प्रताप यादव, अमरजीत, अंकुश, बृजमोहन, विकास, अजय, अतीश, विवेक, विजय, मुरलीधर, मल्हर पहलवान, श्यामधर सहित अन्य ग्रामीण शामिल रहे। गांव आज इन सभी की एकजुटता पर गर्व कर रहा है।

यह पहल दुष्यंत कुमार की पंक्तियों को चरितार्थ करती है—
“कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।”

गायघाट के युवाओं ने पत्थर नहीं, बल्कि उम्मीदों का पुल खड़ा कर दिया है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments