बस्ती (राष्ट्र की परम्परा)। जिले के डारीडीहा में चल रही श्रीमद भागवत कथा में कथा व्यास डॉ. कौशलेन्द्र कृष्ण शास्त्री के मुखारविंद से भगवान के 16108 विवाहो का वर्णन एवं सुदामा चरित्र बहुत ही सुंदर वर्णन किया गया।
उन्होंने कहा कि कथा कभी खत्म नहीं होती है। कथा का हमेशा विश्राम होता है। आज यहां पर विश्राम हुआ, कल कहीं और प्रारंभ हो जाएगी। भगवान के चार पीठ हमेशा सत्य है। द्वारका भगवान की योगपीठ, मथुरा तत्व पीठ, वृंदावन रस पीठ है और हस्तिनापुर कर्म पीठ है। जहां पर भगवान हमेशा नित्य निवास करते हैं। भगवान के 16108 विवाह हुए। भगवान अपने परिवार के साथ में द्वारका योगपीठ में विराजते भगवान के प्रथम पुत्र प्रदुमन महाराज हुए हैं।
प्रवचनों में कथा व्यास ने उषा अनिरुद्ध विवाह, राजा नल की कथा, राजा पौंड्रक का वध और सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा जी भगवान के परम भक्त हैं। जिनकी भक्ति सर्वश्रेष्ठ हैं। भगवान से कभी उन्होंने कुछ मांगा नहीं। यही भक्ति का सर्वोपरि लक्षण है। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो। तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है।
उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं। तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक निर्धन व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का निर्धन व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर गले लगा लिया। यह होती हे सच्ची मित्रता।
उन्होंने आगे दत्तात्रेय–परीक्षित मोक्ष की कथा श्रवण कराते हुए कहा बच्चों में संस्कारों और संस्कृति का भी बोध कराया श्रीमद् भागवत कथा के दौरान, सुखदेव आगमन, कपिल देवहुति संवाद, सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, जड़ भरत अजामिल उपाख्यान, प्रहलाद चरित्र, वामन चरित्र की कथा का वर्णन किया जा रहा है।
व्यास पीठ से उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने की महती आवश्यकता है। बाल्यावस्था से ही हम अपने बच्चों में अच्छे संस्कार डालते हुए उन्हें संस्कारों के लिए प्रेरित करें। भगवान श्रीराम की गुरूभक्ति और मर्यादित जीवन पिता के आदेश पर वनगमन स्वीकार लेना और वन में विचरण करते हुए बानर और भीलों के माध्यम से रावण रूपी बुराईयों को खत्म करने, भक्त प्रहलाद द्वारा प्रभु के प्रति निष्ठा और लगन वास्तव में हमारे लिए एक संदेश देते है। इन संदेशों को हमें आत्मसात करना होगा। प्राणी
ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री ने दिव्य पूजन सम्पन्न कराया और सूरज दास करन अर्जुन द्वारा दिव्य भजन कीर्तन प्रस्तुत किया गया।
कथा के मुख्य यजमान राम प्रसाद त्रिपाठी, पंडित सरोज मिश्र, पंडित चंद्र प्रकाश पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार पुनीत दत्त ओझा, राहुल पाण्डेय, जगदीश शुक्ल, रामतेज चौधरी, विष्णु मिश्र, शिवांस त्रिपाठी, महेंद्र नाथ यादव, शैलेश दूबे, राकेश, पवन कुमार सहित क्षेत्रिय स्रोता बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
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