July 14, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

कोविड -19 की डरावनी याद

अद्भुत, आज से कुछ साल पहले राष्ट्रों
की सीमाएं टूट गईं थीं, युद्ध के नगाड़े
थम गये थे,आतंकी बंदूकें खामोश थीं,
अमीर, गरीब का भेद मिट गया था।

आलिंगन, चुम्बन का स्थान मर्यादित
आचरण ने ले लिया था, स्टेडियम,
क्लब, पब, मॉल, होटल, बाज़ार पर
अस्पताल की महत्ता स्थापित हुई थी।

अर्थशास्त्र के ऊपर चिकित्साशास्त्र
स्थापित हो गया था, एक छोटी सुई,
एक थर्मामीटर कैसे मिसाइल, गन
टैंक से अधिक महत्वपूर्ण हो गये थे।

मंदिर, चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारा बंद,
हृदय में विराजमान प्रभु को फिर से
पूजा जाने लगा था, थाली, ताली
धर्म व अध्यात्म स्थापित हो गये थे।

भीड़ में खोया आदमी, परिवार में
लौट आया था, सिर्फ एक अदृष्य
वायरस ने ही मानव जाति व उसके
विज्ञान को पूरी औकात बता दी थी।

कोविड महामारी की हर लहर एक से
बढ़कर एक जानलेवा घातक बन कर
नर नारी बाल वृद्ध को मौत दे रही थी,
श्मशान में लाशें इंतज़ार कर रही थीं।

दो गज की दूरी, मास्क था ज़रूरी,
सैनीटाइजेसन, हाथ लगातार धोना,
आदित्य घर का हर कोना पोजिटिव
निगेटिव की रिपोर्ट से प्रभावित था।

सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे
सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यंति
मॉकश्चिददुःखभागभवेत॥

डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’