June 18, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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प्रो.माता प्रसाद त्रिपाठी का निधन विद्वत समाज की अपूरणीय क्षति: प्रो. राजवंत राव

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग में आचार्य माता प्रसाद त्रिपाठी के असामयिक निधन पर शोक सभा आयोजित की गयी। आचार्य माता प्रसाद त्रिपाठी सन् 1968 से प्राचीन इतिहास विभाग में अनवरत प्रवक्ता, उपाचार्य और आचार्य पद पर कार्य करते हुए नौ वर्षों तक अध्यक्ष पद पर थे। वे ब्राह्मण धर्म एवं दर्शन एवं प्रतिमाशास्त्र के लब्धप्रतिष्ठ आचार्य थे। भारतीय संस्कृति के अध्ययन-अध्यापन के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर वे इतिहास एवं संस्कृति के पुनर्विवेचन के पक्षधर थे। उन्होंने ‘शब्द एवं धरती’, सब रंग: लोक-राग, संधान, मोमगाछ पिघले एवं वागर्चना जैसी महत्त्वपूर्ण कृतियों का प्रणयन किया था। जो विद्वानों के मध्य समाद्रित थी। ललित निबन्धकार के रूप में ‘शब्द और धरती’ पर उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने पुरस्कृत किया था।
साहित्यिक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख एवं गीत प्रकाशित हुये थे। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वे यश भारती से सम्मानित साहित्यकार थे। इतिहासविद एवं साहित्यकार होने के साथ-साथ वे एक नेकदिल तथा संवेदनशील मनुष्य थे। उनका निधन इतिहास, संस्कृति एवं साहित्य की अपूरणीय क्षति है। उनके निधन पर प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग के शिक्षक, कर्मचारियों और छात्रों ने अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।
कला संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर राजवंत राव ने कहा कि प्रोफेसर माता प्रसाद त्रिपाठी के निधन से विद्वत समाज की अपूरणीय क्षति हुई है. वह विद्वान होने के साथ-साथ बहुत ही भले एवं उदार मनुष्य थे।
शोक सभा में विभागाध्यक्ष प्रो. प्रज्ञा चतुर्वेदी, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विपुला दुबे, कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजवन्त राव, प्रो. चित्तरंजन मिश्र, शीलता प्रसाद सिंह पूर्व अध्यक्ष, डॉ. मणीन्द्र यादव, डॉ. विनोद कुमार, स्ववित्तपोषित प्रबंधक महासभा के महामंत्री डॉ. सुधीर राय, डॉ. आशुतोष कुमार सिंह एवं शोध छात्र/छात्राएँ उपस्थित थे।