
ख़ुश दिखने से ज़्यादा अच्छा
सचमुच में ख़ुश रहना होता है,
दुःख की घड़ी सामने हो, तो इसे
भूल ख़ुश रहना अच्छा होता है।
हम सबका जीवन संवेदना पुंज है,
पर सारी संवेदनाओं के होते भी,
हम सब की कोशिश होती है अपने
संवेगों पर नियंत्रण रख पाने की ।
हमेशा अपने को कमज़ोर दिखाने
वाले भावों को हम सभी दबा देते हैं,
शायद अतिशय मजबूत दिखने की
निरर्थक कोशिश भी हम करते हैं।
दूसरों की नज़र में एक प्रभावशाली
व्यक्तित्व के रूप में हम उभरते तो हैं,
लेकिन अपनी भीतरी शक्तियों को
स्वयंमेव क्षीण भी करते रहते हैं ।
एक सीमा तक अपने संवेगों पर
नियंत्रण रख पाना उचित होता है,
अनावश्यक दमन का परिणाम
मानसिक रोग के रूप में होता है।
इसलिए जिस समय हम जैसा
महसूस करें, वैसा ही व्यक्त करें,
दुखी, परेशान हों तो वही जताएं,
उससे उबरने की कोशिश भी करें।
याद रखें – खुश दिखने से ज्यादा
जरूरी खुश रहना अच्छा होता है,
‘बस यूँ ही’ किसी का अच्छा विचार
यह आदित्य ने कविता में गूँथा है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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