
–क़ैसर से जूझ रही एएनएम तीसरी पीढ़ी को भी दे रहीं सेवाएं
बहराइच (राष्ट्र की परम्परा) मातृ एवं शिशु सुरक्षा में संस्थागत प्रसव को बेहद अहम माना जाता है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र और जंगल के गांवों में प्रसव सहित अन्य स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाना आसान नहीं है।कहीं जंगली जानवरों का डर है तो कहीं सैलाब में खराब रास्ते आवागमन में रोड़ा बन जाते हैं।लेकिन ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही सत्यवती एएनएम इन कठिन परिस्थितियों में भी प्रसूताओं का हमदर्द बन उन्हे सुरक्षित मातृत्व का वरदान दे रही हैं।खूंखार जानवर और विकट पगडंडियां -भारत–नेपाल सीमा पर बसे मिहींपुरवा ब्लॉक का सुजौली पीएचसी करीब 22,000 से अधिक आबादी को प्रसव सहित अन्य स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराता है।कई बार तेंदुआ, शेर व अन्य जंगली जानवर भटकर इस पीएचसी तक आ जाते हैं। सत्यवती बताती हैं यहां 13 ऐसे पुरवे हैं जहां पहुंचने के लिए पगडंडियों से होकर वैरी घाट नाला पार करना पड़ता है। पिछले वर्ष वह टीकाकरण कर शाम को आशा कार्यकर्ता के साथ इसी नाले को पार कर रहीं थी। तभी उन्होंने पानी पीते हुए तेंदुआ देखा। वह दोनों डर कर वापस लौट गईं और बाद में ग्रामीणों की मदद से नाला पार किया।अपने ही हाथों कराया तीसरी पीढ़ी का जन्म –
इस स्वास्थ्य केंद्र पर जब प्रसव सेवाएं शुरू हुईं तो एक-दो लोग ही आते थे। लेकिन स्वास्थ्य विभाग से मिले प्रशिक्षणों का परिणाम यह रहा कि सत्यवती के दक्ष हाथों ने प्रसूताओं के दर्द पर मरहम लगाया और बात लोगों तक पहुंची।धीरे-धीरे प्रतिमाह सैकड़ों किलकारियां स्वास्थ्य केंद्र में गूंजने लगीं।लोगों में इनके प्रति ऐसा विश्वास बना कि तीसरी पीढ़ी का भी जन्म इसी स्वास्थ्य केंद्र में हुआ कैंसर से लड़ते हुए प्रसूताओं के दर्द पर लगाती हैं मरहम-
स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी जुगुल किशोर चौबे बताते हैं कि एएनएम सत्यवती वर्ष 2006 से ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित हैं,पीजीआई चंडीगढ़ से इलाज चल रहा है इसके बावजूद उनके उत्साह में कोई कमी नहीं है।बीते वर्ष धनिया बेली गांव की एक प्रसूता को कुछ लोग नाव से स्वास्थ्य केंद्र ले जा रहे थे। जानकारी मिलने पर एनम सत्यवती नदी तक पैदल दौड़ गयीं।दस्तक अभियान के बैनर से गोल घेरा बनाया और प्रसूता का प्रसव नाव पर ही करा जच्चा-बच्चा दोनों को सुरक्षित कर लिया। बाढ़ क्षेत्र का जायजा लेने पहुंचे जिलाधिकारी डॉ दिनेश चंद्र ने सुरक्षित प्रसव कराने के लिए एनम सत्यवती को पुरस्कृत किया।
फावड़ा उठाया और खोल दिया सुनहरे भविष्य का रास्ता -बाढ़ के कारण जंगल का कच्चा रास्ता कट जाने से स्वास्थ्य केंद्र तक एंबुलेंस का आवागमन बंद हो गया था। वन विभाग रास्ता बनाने की अनुमति नहीं दे रहा था । इससे आस-पास के कई गांवों में घरेलू प्रसव हो रहे थे।ऐसे में एएनएम सत्यवती ने आशा कार्यकर्ताओं के साथ मिट्टी पाटकर सुरक्षित मातृत्व की राह आसान कर दी ।उनके इस नेक काम की चर्चा आज भी सबकी जुबान पर है।टीमों को टीकाकरण व अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ऐसे स्थानों पर भी जाना पड़ रहा है,जहां पहुंचने के लिए सुरक्षित रास्ते नहीं हैं। उम्मीद है कि स्वास्थ्य टीम के जज्बे से जल्द ही जनपद बहराइच स्वास्थ्य सेवाओं में मिसाल कायम करेगा।
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