मैं भारत की बात करूँ, जो मेरा गौरवशाली देश,
दर्शन की परम्परा में, रहा अद्वितीय विशेष।
ज्ञान-विज्ञान के जनक, दर्शन ने दिए हमें,
राह दिखाई मानव को, अंधकार के क्षणों में।
पर आज वही विचारधारा, हो रही दुर्लभ,
शिक्षा में दर्शनशास्त्र, अब हो रहा है लुप्त।
विद्यार्थी दूर होते, वेद,उपनिषद के विचारों से,
न्याय-वैशेषिक, मीमांसा, वेदान्त, खो रहे सन्दर्भों में।
पश्चिमी दार्शनिकों के, अद्भुत अनमोल विचार,
जो दुनिया को समझाए, जीवन के अनगिनत सार।
प्लेटो, सुकरात, कांट और रसेल, छूट रहे पृष्ठों से,
विट्गेंस्टाइन की तर्क-धारा, रह गई किताबी लेखों में।
नैतिकता का हास हो रहा, तर्क का अभाव बढ़ा,
युवाओं में अज्ञान फैला, भटकाव है घना।
अपराध और आत्महत्या, नैतिक संकट गहराए,
इन समस्याओं का हल, दर्शन के विचार ही लाए।
तो आओ पुनः जगाएँ, इस महान ज्ञान की शान,
फिर से भारत के युवाओं में, विचारों का हो सम्मान।
दर्शनशास्त्र का हो विस्तार, हर कॉलेज और कक्ष में,
भारत की प्रगति और गौरव, फिर से हो आकाश में।
प्रतीक झा, शोध छात्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालयप्रयागराज, उत्तर प्रदेश
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