
जीवन में जो कुछ है प्राप्त हुआ,
श्रीराम कृपा मान स्वीकार करूँ,
भोजन न पचे तो अपच रोक सकूँ,
ऐश्वर्य बढ़े तो दिखावा न करूँ ।
वैसे ही बात न पचने पर शिकवा,
शिकायत व चुग़लखोरी रोक सकूँ
अति प्रशंसा से अंहकार नहीं करूँ,
निंदा न पचे तो दुश्मनी नहीं करूँ।
राज न पचने पर खतरा बढता है,
दुःख न पचने पर निराशा बढ़ती है,
सुख नहीं पचने पर पाप बढ़ता है,
ख़तरे, निराशा, पाप सब रोक सकूँ।
श्रीराम प्रेम त्याग की मूर्ति सदा
वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं,
उनकी कथनी व करनी में सदैव,
“प्राण जायँ पर बचन न जाये” हैं।
मेरे तन मन में मेरे श्री राम बसे हैं,
उनकी मर्यादायें मेरी मर्यादायें हैं,
आदित्य अलौकिक अनुपम राम
कृपा हम सभी सदैव ही पाये हैं ।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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