Friday, December 26, 2025
HomeUncategorizedमित्रता और राजनीतिक मनभेद

मित्रता और राजनीतिक मनभेद

मेरी कविताओं में मित्रों किसी तरह
की कोई राजनीति तो मत खोजो,
जिनक़ा नहीं दूर तक मुझसे कोई
नाता है, उन अपवादों को मत खोजो।

इन वादों और वादा करने वालों पर
अब कोई भरोसा कैसे क्यों कर लेगा,
इनके चक्कर में पड़ कर अपना जो
प्यारा रिश्ता है, उसको मत तोड़ो।

आपका बड़प्पन वह गुण है जो पद
से नहीं संस्कारों से प्राप्त हुआ है,
ग़ैरों को अपना बनाना कम मुश्किल,
जितना अपनों को अपनाये रखना है।

हम वह इंसान नहीं है जो खुद के
लिए ही बस इस जग में जीता है,
क्योंकि खुद के लिए जीने वालों का
मरण एक दिन इस दुनिया में होता है।

दूसरों के लिए प्रायः जीने वालों का
स्मरण मर जाने के बाद भी होता है,
“खुद जियो और दूसरों को भी जीने
दो” से सबका रिश्ता सुदृढ़ होता है।

अपरिपक्वता लोगों को तर्क वितर्क
करने का सदा बढ़ावा देती रहती है,
क्यों न रिश्तों पर पानी फिर जाये,
उनको परिपक्व नही होने देती है।

परिपक्व व्यक्ति तर्क वितर्क कुतर्क
नहीं किया करते हैं, उन्हें छोड़ देते हैं,
तर्क वितर्क छोड़कर वे अपना प्यारा
अपनों का रिश्ता सदा बचा लेते हैं।

पानी को कितना भी गर्म उबाल डालो,
थोड़ी देर में वह शीतल हो जाता है,
आदित्य मानव स्वभाव भी ऐसा है कि,
क्रोध ख़त्म होने पर शांत हो जाता है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ ‎

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments