
सबसे बेहतर रंग की तलाश में,
काले, सफ़ेद कोट हमने पहना,
जय होवे अधिवक्ता साहब की,
जय होवे चिकित्सक साहब की।
उसके जजबात की कोई कद्र नहीं,
उस सैनिक को तो होता है मरना,
जिसने थी ओजी, चितक़बरी वर्दी,
युवापन से पूरी जवानी भर पहना।
देश की आन बान शान होती है,
सैनिक के जीने मरने का कारण,
सीमा की रक्षा में आहुति देता है,
देशवासियों को देता अभयारण्य।
उस जवान सैनिक के घर परिवार
से पूछ सको तो पूछो आप साहब,
चैन की नींद आप सोते होंगे घर में,
सावधान सिपाही तैनात है सीमा में।
सीमा का प्रहरी, वह सबका रक्षक,
आदित्य जब तिरंगे में लिपटा होकर,
माँ-बाप, पत्नी-बच्चों को मिलता है,
क्या शहादत उसकी नहीं सर्वोपरि है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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