Friday, December 26, 2025

आया बसन्त

आया बसन्त आया बसन्त,
दिवदिगन्त में छाया बसन्त।
तरु पल्लव किसलय झूम रहे,
खेतों में सरसों फूल रहे,
नवकलिका आँखे खोल रहीं,
वासंती छटा निहार रहीं,
कोमल लतिका भी डोल रही,
उद्यान की शोभा बढ़ा रही,
बहुरंगी पुष्प सुगन्धित हैं,
माली का मन प्रफुल्लित है,
कृषक का मन अति हर्षित है,
प्रकृति भी हुई तरंगित है।

पुष्प पराग मधुर रस पीकर,
भवरे गुंजन करते हैं,
उद्यान वाटिका में निशि दिन,
उन्मुक्त हो विचरण करते हैं,
तितली भी पीत चुनर ओढ़े,
उड़ उड़ करके यह कहती है,
आया बसंत आया बसंत छाया बसंत।

शीत ऋतु की शीत लहर,
अब अपना मुखड़ा छुपा रही,
काँपते ठिठुरते जन जन को
कुछ-कुछ राहत दिला रही,
पंछी भी कलरव करते हैं,
बसंती राग सुनाते हैं,
बहती है मंद बयार पवन,
जो मंद मंद मुस्काती है,
जन जन के मानस मंदिर में,
सोया हुआ प्राण जगाती है,
यही तो है संदेश बासंती,
नित नूतन कुछ करने का,
और नित नूतन कुछ गढ़ने का।
करते बसंत का स्वागत हम,
संकल्प सृजन का लेते हम,
भाव पुष्प की माला को,
चरणों में अर्पित करते हैं,
बसंती संदेश आगया,
प्रकृति का संदेश आ गया।
आया बसंत छाया बसंत आया बसंत।

कवियित्री सुभद्रा द्विवेदी,
लखनऊ

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