March 14, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

बिना वजह हँसना : ज़िंदादिली

खुल कर हँसने की वजह कोई
बहुत ख़ास भले ही नही होती,
मुस्कुराकर देखो, यह सारी धरती
हंसती ख़ुश मिज़ाज नज़र आती।

बिना वजह खिल खिलाने से
केवल अपनी ही नहीं, बल्कि
हर किसी की ज़िंदगी में भी
यह हँसी एक रौनक़ लाती।

आँखों में आँसू और शीशे में
शक्ल धुंधली नज़र आती,
यही ज़िंदगी “कभी ख़ुशी
कभी ग़म” भी बतलाती ।

हँसता हुआ चेहरा ख़ूबसूरत लगता,
मुँह बिगाड़ने से क्या मिलेगा दोस्त,
मुँह फुलाया चेहरा रोता नज़र आये,
जीवन जीना है तो बिंदास मुस्कुरायें,

बिंदास मुस्कुराने से तनाव दूर भागे
जीवन में तनाव मिलता आगे आगे,
देखा जाय तो तनाव किसको कम है
अच्छा है या बुरा यह केवल भ्रम है।

वैसे तो मुस्कुराहट जितना बताती है
अक्सर उससे कहीं ज्यादा छुपाती है
आँसुओं का आना कमाल दिखाते हैं
बाहर कम अंदर ख़ूब बरस जाते हैं।

ख़ुशी के लिए अपने आप से ज़्यादा
औरों का ख़याल रखना पड़ता है,
आदित्य दुःख में सुख में हर पल हर
समय ज़िन्दादिल रहना पड़ता है ।

कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य