
मेरी रचना, मेरी कविता
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भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर कितना न्यारा।
धरती से लेकर अम्बर तक,
सागर से उठकर हिमगिरि तक।
गंगा- यमुना धार निछावर,
हर भारतीय की आँख का तारा।
भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर कितना न्यारा।
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण,
सुजलाम, सुफलाम प्यारी धरती,
नदियाँ, नहरें कल-कल बहतीं,
मलयज शीतल बयार बहती,
हरीतिमा-रेनुका का संगम,
सारे जहाँ में सबसे न्यारा।
भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर, कितना न्यारा।
कुसुमित कलियाँ, गूँजत भँवरे,
गेंदा, गुलाब खिलें गुलाबाँस,
गुलमेहंदी, बेला महक रहे,
चम्पा चमेली गुलखैरा हज़ार,
निम्बू, नारंगी, के रंग-रंगीले ,
बलिहारी जाये जग सारा।
भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर, कितना न्यारा।
शान तिरंगे की जग-ज़ाहिर,
विजयी – विश्व कहलाता है,
हरा रंग है, हरी हमारी धरती,
अनुपम- उपजाऊ हरियाली,
सर्व सम्पन्न भारत का प्रतीक,
हरा रंग है सतरंगों में न्यारा ।
भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर, कितना न्यारा।
केसरिया रंग है साहस, शौर्य,
त्याग और बलिदान का द्योतक,
स्वच्छ धवल निर्मल रंग मोहक,
सत्य, अहिंसा, शान्ति झलकाता,
चक्र अशोक धर्म-न्याय का रक्षक,
महान भारत की महिमा गाता ।
भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर, कितना न्यारा।
देश धर्म पर बलि बलि जाकर,
हम शीश समर्पित कर देंगे,
हैं वीर सिपाही भारत के,
हम प्राणों की बलि दे देंगे,
विश्व गुरू हम बन जायें,
तब होगा प्रण पूर्ण हमारा।
भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर, कितना प्यारा।
सत्य-अहिंसा, शान्ति हमें प्रिय,
प्रतिपादित सिद्धांत हमारा,
क्षेत्र अलग हैं, भेष अलग हैं,
रहन सहन भी अलग हमारा,
बहु धर्मी, बहु भाषी हैं हम,
अमृत महोत्सव मना रहा है।
भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर, कितना न्यारा।
नज़र स्वार्थपरता की इसपर,
हम कभी नहीं लगने देंगे,
कन्याकुमारी-कश्मीर तलक,
सोने की चिड़िया गढ़ देंगे,
मतभेदों के अंधकार को,
आदित्य पूरी तरह मिटा देंगे।
भारतवर्ष हमारा प्यारा,
कितना सुंदर, कितना न्यारा ।
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ
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